रविवार, 10 जुलाई 2011

मौन के साम्राज्य में


आओ चलें 
इस भीड़ से दूर कहीं
जहाँ मौन मुखरित हो
और शब्द निष्प्राण,
अपने चेहरे से
मुखौटे को उतार कर
अपने ह्रदय से पूछें 
कुछ अनुत्तरित प्रश्न,
झाड़ कर
वर्षों से जमी धूल
धुले हुए वस्त्र पहनें  
और बैठ कर
मौन के आगोश में
परम सत्य की
खोज करें,
आओ चलें
मौन के साम्राज्य में
जहाँ शब्दहीन ज्ञान 
प्रतीक्षारत है! 

20 टिप्‍पणियां:

  1. परम सत्य की
    खोज करें,
    आओ चलें
    मौन के साम्राज्य में
    जहाँ शब्दहीन ज्ञान
    प्रतीक्षारत है!
    यही तो हमें मुक्त करेगा ! बहुत सुंदर भावभीनी कविता !

    जवाब देंहटाएं
  2. मौन का साम्राज्य वैसे भी बहुत विस्तृत है .......आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. आओ चलें
    मौन के साम्राज्य में
    जहाँ शब्दहीन ज्ञान
    प्रतीक्षारत है! ...kitna alaukik hoga n

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

    मगर रंग को सुधारे

    जवाब देंहटाएं
  5. आओ चलें
    मौन के साम्राज्य में
    जहाँ शब्दहीन ज्ञान
    प्रतीक्षारत है!
    वाह ..मौन की सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  6. आओ चलें
    मौन के साम्राज्य में
    जहाँ शब्दहीन ज्ञान
    प्रतीक्षारत है!
    सुंदर अतिसुन्दर रचना , बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. अप्रतिम रचना है ...शब्द और भाव अनूठे हैं बधाई स्वीकारें.

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूब ... मौन के स्वर हैं ...
    लाजवाब प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, ..मौन की सुन्दर अभिव्यक्ति जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत....

    जवाब देंहटाएं
  10. अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह मौन को ख़ूबसूरती से पेश किया है.. मौन ही सबसे बड़ी जुबां है.. सबसे बड़ा गुण.. सच है...

    परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. कहीं और भी पढ़ी है यह कविता ..बेहद खूबसूरत है.

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

यह ब्लॉग खोजें

www.hamarivani.com रफ़्तार