(१)
मैं ओस की बूंदें बन
पत्तों पर लुढ़कता रहा
और वो
भंवरा बन फूलों पर
मंडराते रहे!
(२)
मैं परवाना बन
शमा पर मंडराता रहा
और वो
लौ बनकर
मुझे जलाते रहे!
(३)
उनके आंसुओं को हमने
ज़मी ना छूने दी कभी
और उन्होंने
हमारे ज़ख्म की
मरहम तक ना की!
(४)
उन्होंने कभी
नज़रें उठाकर ना देखा हमें
और हम
बंद आँखों से भी
उनका दीदार करते रहे!
(५)
वो देते रहे दर्द
हम सहते रहे
उनकी बेवफाई को भी
हम वफ़ा कहते रहे!
(६)
हम उनकी
मासूमियत के कायल थे
पर वो
बेरहमी की मूरत निकले!
(७)
उन्होंने रिश्तों को
कभी अहमियत ना दी
और हमने
रिश्तों के सहारे
ज़िन्दगी गुज़ार दी!
bahut sundar bhaav.
जवाब देंहटाएंउनके आंसुओं को हमने
जवाब देंहटाएंज़मी ना छूने दी कभी
और उन्होंने
हमारे ज़ख्म की
मरहम तक ना की! सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें
भगवान करे उस तक आपका ई संदेस पहुँचे!!
जवाब देंहटाएं.
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http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/07/blog-post_23.html
यहाँ भी जाकर देखिए...आपका चर्चा किया है हमने!!
सारी क्षणिकाएं बहुत असरदार....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
जवाब देंहटाएं"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
सारी क्षणिकाएं बहुत खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंपहली क्षणिका ने मन मोह लिया!
जवाब देंहटाएंहर क्षणिका अच्छी है
जवाब देंहटाएंउनके आंसुओं को हमने
जवाब देंहटाएंज़मी ना छूने दी कभी
और उन्होंने
हमारे ज़ख्म की
मरहम तक ना की..
...खुबसूरत भाव
बहुत गहरी चोट खाई है दिवाने ने
जवाब देंहटाएंकोई समझा दे इन्हें इस दुनिया का दस्तूर
प्रेम को पागलपन और सादगी को पिछड़ापन समझा जाता है यहाँ ।
बड़े बेरहम हैं वो ।
जवाब देंहटाएंमैं ओस की बूंदें बन
जवाब देंहटाएंपत्तों पर लुढ़कता रहा
और वो
भंवरा बन फूलों पर
मंडराते रहे!
कोई रफीक रहा होगा ......!!
किस पत्थर से पाला पड़ गया आपका कि तड़प कलम तक आ गयी
जवाब देंहटाएंऔर पूरी मानवता ही कटघरे में खड़ी हो गयी
हा...हा..हा...हा...
जवाब देंहटाएंवही पुराने जख्म और कहानी, इस विषय पर रचनाएँ मानव के साथ ही जायेंगी :-) !
अच्छी अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाये !
उनके आंसुओं को हमने
जवाब देंहटाएंज़मी ना छूने दी कभी
और उन्होंने
हमारे ज़ख्म की
मरहम तक ना की....
सारी क्षणिकाएं बहुत खूबसूरत है...
oof ye ektarfe rishte........dard ke shrotr hee sabit hote hai...........
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