शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

जीवन एक संघर्ष

जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ा , जीवन से और यहाँ तक की ख़ुद से भी संघर्ष करता रहा हूँ , परिस्थितिवश या अपनी कमजोरी से मैं अपने आप में इतने बदलाव ले आया हूँ की कभी कभी तो ख़ुद को ही नही पहचान पाता, कुछ बदलाव तो मजबूरीवश लेन पड़े और कुछ अपनी कमजोरीवश, लेकिन मैं कभी नही चाहता था की मैं ऐसा बनू जो मैं आज हूँ! सारांश में कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ जो की मैंने तब लिखी थी जब मैं अपने सिद्वांत , ईमानदारी, सच्चाई और अपने ज़मीर से थक चुका था.....
पिता जी ने कहा था
बेटा,सत्य के मार्ग पर चलना
मैं चला,
पर फिसलन बहुत थी वहां
घुटने छिल गए,
गिर कर फिर उठा
और चल पड़ा उस मार्ग पर
जो खुरदरा तो था
पर वहां फिसलन नहीं थी !
जवानी के वो सुनहरे दिन जब पलकों में सपने पलते हैं, मैं चल पड़ा था अपनों से, अपने प्यारे शहर से और अपने अज़ीज़ दोस्तों से दूर एक अजनबी शहर की तरफ़ जहाँ कोई किसी का नही था, हर रिश्ता किसी न किसी स्वार्थ का था, शुरू में अक्सर मैं अकेले में रोया करता था, दोस्तों के ख़त मिला करते थे तो खुशी से आँखें भर आती थी, वो साल था सन् १९९२ का जब मैं बीकानेर से गुवाहाटी आया,  गुवाहाटी में एक समय ऐसा भी आया था जब खाने के लिए जेब में पैसे नही होते थे, और वो ऐसा समय था जब मेरी माँ और पिता जी पूछा करते थे की बेटा काम कैसा चल रहा है और मैं हमेशा कहा करता था की बहुत अच्छा चल रहा है, शायद वो सोचते होंगे की इसका काम तो अच्छा चल रह है लेकिन हमें तो आज तक एक रूपया भी नही भेजा, हालाँकि हमारा वहां भी अच्छा खासा काम है सो मेरे भेजने न भेजने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था पर मैं अपनी स्थिति बता कर उन्हें तकलीफ पहुचाना नही चाहता था, संघर्ष तो जारी है लेकिन आज स्तिथि कुछ ठीक है, सन २००० में शादी हुई और आज दो बच्चे मेघा और राघव के साथ खुश हूँ, लेकिन खुद के जीवन से संतुष्ट नहीं हूँ, जैसी ज़िन्दगी मैं जीना चाहता था वो नहीं जी पाया, लेकिन फिर भी जो कुछ भी जीवन में मिला उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद ! शेष फिर!

4 टिप्‍पणियां:

  1. kabhi aankh utha kar apney charon taraf failey is anant aishwry ko dekhna. dukh microscopic hotey hain sukh telescopic, isiliye dukh badey aur sukh chhotey dikhteye hain varna sukhon ki list bahut bahut badi hai.

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  2. बहुत ही काबिलेतारीफ बेहतरीन


    SANJAY KUMAR
    HARYANA
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  3. bhai aapki kahani sun kar aacha laga main bhi udas tha search kar raha tha.

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  4. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

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NILESH MATHUR

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