मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

मौन

मौन की नदी में 
नहा कर ही मैंने 
आत्मा का संगीत सुना था
जिसे सुनने को 
मैं सदियों से तरस रहा था,
और यही वो संगीत था
वो मधुर संगीत 
जो ले गया मुझे 
उस जहाँ में 
जहाँ सिर्फ प्रेम है,
और वो संगीत सुनकर  
मैं, मैं ना रहा
मेरा अस्तित्व ही 
ना जाने कहाँ खो गया,
सुनना है गर वो संगीत तुम्हे
तो मौन की नदी में
ज़रा उतर के तो देखो!





6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रशंसनीय पोस्ट .

    कृपया ग्राम चौपाल में पढ़े - " भविष्यवक्ता ऑक्टोपस यानी पॉल बाबा का निधन "

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  2. Atisundar..!! wah kya baat hai neelesh ji ! maun me shakti bhee hai aur shanti bhee ! aabhar !!

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  3. वाह .. क्या बिम्ब दिया है 'मौन की नदी'

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  4. nilesh ji
    aapki dono post ' aaj fir se 'our ' moun ' bhut psnd aai . aaj fir se me aapko jo comment se mil rhe hai usse duvidha me hu .maine kharij likha , kai pathko ne use meri jindgi ka ek hissa mana jbki mujhe ye spsht bar bar krna pda ki ye vyktigt kuchh bhi nhi hai sirf rchnakar ki bhavnao ki abhivykti matr hai . usi trh dusri post ' hmari tumhari bate ' bhi abhivykti hai , ho bhi skya hai our nhi bhi .isi trha aapka moun bhut mukhrit lga , excellent !
    ydi aapko etraj na ho to ' aaj fir se ' ki mnhsthiti ko spsht krne ki drkhvst hai .
    shesh kushl . thanks .

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  5. मौन का अनुभव आपने बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है, काश यह अनुभव हम सभी को हो! इतनी भावपूर्ण ,दिल की गहराई से निकली कविता के लिये बधाई स्वीकारें !

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NILESH MATHUR

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