मैं एक आम आदमी
अब भी नहीं पहुंची है
परिवर्तन की लहर
मेरे जीवन मे,
सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात
हर सुबह फिर से ले आती है
अनगिनत चिंताओं की सौगात,
डरा सहमा सा
गुजारता हूँ दिन किसी तरह
छुपता हूँ मकान मालिक से
और सुनता हूँ ताने बीवी के,
हर सुबह निकलता हूँ घर से
बच्चों की फीस और
रासन की चिंता लिए
और दिन ढले फिर से
खाली हाथ लौट आता हूँ,
जीने की जद्दोजहद मे
और रोज़मर्रा की जरूरतों मे उलझा
मैं एक आम आदमी
बिता देता हूँ
आँखों ही आँखों मे सारी रात,
इस आस मे
कि कल तो होगी
एक नयी सुबह
जब मैं बच्चों को
बाज़ार ले कर जाऊंगा,
और बीवी को
एक नयी साड़ी दिलवाऊंगा,
एक नयी सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात मेरी
मैं हूँ एक आम आदमी।
आम आदमी की तरह ही गुजरे जिंदगी
जवाब देंहटाएंक्योंकि इसीमें है जिंदगी
यही है असली ज़िंदगी ......
जवाब देंहटाएंसबकी यही कहानी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआम आदमी के चरित्र को चित्रण करने में सफल रचना |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति...सच्ची कविता वही है जिसमें आम आदमी की पीड़ा अभिव्यक्त होती है.
जवाब देंहटाएंhttp://himkarshyam.blogspot.in
आम आदमी का खाका खींच दिया आपने ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ....
हर आम आदमी की सोच को बहुत अच्छे अंदाज़ में लिखा है
जवाब देंहटाएं.सच्ची कविता
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