आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
सोमवार, 2 जुलाई 2012
दिव्य प्रेम
प्रेम व्यापक है सर्वव्यापी है प्रेम, तुम्हारे और मेरे हृदय की गहराइयों मे सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही तो है, तुम्हारा और मेरा स्वभाव है प्रेम प्रेम ही भक्ति प्रेम ही ईश्वर है शाश्वत सत्य है प्रेम, शब्दों से परे है चेतना का आधार है प्रेम !
नैसर्गिक ...सुंदर भाव ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
जब शाश्वत है प्रेम तो नश्वर कैसे है ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ध्यान दिलाने के लिए, गलती से लिखा गया था।
हटाएंसही कहा है...प्रेम सत्य है पर वह नश्वर नहीं हो सकता जो शाश्वत है...
जवाब देंहटाएंशाश्वत है प्रेम
जवाब देंहटाएंप्रेम के बगैर संसार अधूरा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
प्रेम के बिना जीवन में रह ही क्या जाता है |
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना |
आशा