सोमवार, 2 जुलाई 2012

दिव्य प्रेम




प्रेम व्यापक है
सर्वव्यापी है प्रेम, 
तुम्हारे और मेरे 
हृदय की गहराइयों मे 
सिर्फ और सिर्फ 
प्रेम ही तो है,
तुम्हारा और मेरा 
स्वभाव है प्रेम 
प्रेम ही भक्ति 
प्रेम ही ईश्वर है
शाश्वत सत्य है प्रेम,
शब्दों से परे है 
चेतना का आधार है प्रेम  !
  

7 टिप्‍पणियां:

  1. नैसर्गिक ...सुंदर भाव ...!!
    शुभकामनायें.

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  2. जब शाश्वत है प्रेम तो नश्वर कैसे है ...

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    उत्तर
    1. धन्यवाद ध्यान दिलाने के लिए, गलती से लिखा गया था।

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  3. सही कहा है...प्रेम सत्य है पर वह नश्वर नहीं हो सकता जो शाश्वत है...

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रेम के बगैर संसार अधूरा है
    बहुत सुंदर ...

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  5. प्रेम के बिना जीवन में रह ही क्या जाता है |
    अच्छी रचना |
    आशा

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NILESH MATHUR

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