अनजान था
दोस्ती से
भावनाओं के जोर से
समाज के उसूलों से,
लेकिन अब....
सीख गया हूँ
मैं भी
दुनियादारी,
किस तरह
पीठ में खंजर
भोंकना है,
या किसी की
भावनाओं से खेलना है,
अब मैं भी
रंगमंच का
दोस्ती से
प्रेम से
अपनत्व से
रिश्तों से
और दुनियादारी से,
अनजान था
खुद अपने आप से
और अपनों से
दोस्तों से
दुश्मनों से,
अनजान था
मैं अपनी सोच के स्तर से
रिश्तों की डोर सेभावनाओं के जोर से
समाज के उसूलों से,
लेकिन अब....
सीख गया हूँ
मैं भी
दुनियादारी,
किस तरह
पीठ में खंजर
भोंकना है,
या किसी की
भावनाओं से खेलना है,
अब मैं भी
रंगमंच का
एक कुशल कलाकार
बन चुका हूँ!
बहुत दुःख हुआ यह जानकर...
जवाब देंहटाएंजो नही सीखना चाहता उसे भी ये दुनिया सिखाकर दम लेती है
जवाब देंहटाएंजिन्दगी हमें बहुत कुछ शिखा देती है......
जवाब देंहटाएंBlog viradaree me swaagat hai aapkaa :)
जवाब देंहटाएं:))
हटाएंGAHAN BHAVNAON KO PRAKAT KIYA HAI AAPNE .aabhar YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC !
जवाब देंहटाएंBAHUT GAHAN BHAVNAON KO PRAKAT KIYA HAI AAPNE .aabhar YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .. सीखना ही पडता है
जवाब देंहटाएंकलाकार तो बन गए मगर यह कला अच्छी नहीं हैं :)
जवाब देंहटाएंभाई, ऐसी दुनियादारी मत सीखो। कम ही लोग तो बचे हैं अच्छे।
जवाब देंहटाएंसब कुछ अपने आप ही सिखा देती है जिंदगी ...
जवाब देंहटाएंअब मैं भी
जवाब देंहटाएंरंगमंच का
एक कुशल कलाकार
बन चुका हूँ!
सार्थक संदेश।
समय के साथ चलने के लिए स्वयं में परिवर्तन जरूरी है।
अब मैं भी
जवाब देंहटाएंरंगमंच का
एक कुशल कलाकार
बन चुका हूँ!
समय को समझना आवश्यक है भैया ....
अरे निलेश जी.. ऐसे कलाकार न ही बनें तो बेहतर है..
जवाब देंहटाएंक्योंकि ऐसे कलाकारों की कमी नहीं है.. कमी है तो इस रंग मंच पर अपना अलग रुतबा रखने वाले लोगों की..
पर वो क्या है ना, भेड़-चाल में दुनिया भाग रही है..
सत्य लिखा है आपने.. पर इस सत्य से बचना है हम सबको..
अनाड़ी ही बने रहें....
जवाब देंहटाएं:-)