बुधवार, 31 अगस्त 2011

ना शिकवा है कोई, ना शिकायत



आब-ऐ-आतीश बन
ता- उम्र
जलाया था
जिसने मुझे,
मुड के देखा मैंने
उस ज़िन्दगी को,
मुस्कुरा रही थी 
ज़िन्दगी
मुझे देख कर,
और मैं भी
मुस्कुरा रहा था
छुपा कर
अपने जख्मों के निशान 
जो दिए थे उसने,
ना शिकवा है कोई
ना शिकायत ज़िंदगी से
क्योंकि 

जख्म तो दिये थे उसने
पर जख्मों की मरहम भी
उसी ने की थी ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. ज़ख्म भी मलहम भी ....इस पिटारे में सब कुछ है ....

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  2. बहुत खूब ! जो जख्म देता है वही मलहम भी देता है... फिर कैसी शिकायत ?

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  3. ना शिकवा है कोई
    ना शिकायत ज़िंदगी से
    क्योंकि
    जख्म तो दिये थे उसने
    पर जख्मों की मरहम भी
    उसी ने की थी ।

    गहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।

    मेरे ब्लॉग्स पर भी आपका स्वागत है -
    http://ghazalyatra.blogspot.com/
    http://varshasingh1.blogspot.com/

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  4. जिन्दगी तो जिन्दगी है उस से
    कैसे गिलाशिकावा है कोई ....
    --

    anu

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  5. बहुत खूब लिखा है आपने जिन्दगी जख्म देती जरूर है पर अनजाने मे मलहम भी लगा ही देती है

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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NILESH MATHUR

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