मर जाने का
तो कोई जिन्दा लाश
बना फिरता है,
तिजोरियों में
बंद है मुस्कान
लबों पे ताले जड़े हैं
रातें अक्सर
बीत जाती हैं
करवटें बदलते हुए,
कोई शिखर से
फिसल कर
औन्धे मुँह गिरा है
ज़मीन पर
तो कोई
माथे पर सलवटें लिए
शिखर पर
चढ़ने को बेताब है,
कोई भूख से बेहाल है
फिसल कर
औन्धे मुँह गिरा है
ज़मीन पर
तो कोई
माथे पर सलवटें लिए
शिखर पर
चढ़ने को बेताब है,
कोई भूख से बेहाल है
तो किसी को
बदहजमी की शिकायत है,
कोई पी रहा है
ग़मों को घोल कर
शराब में
तो किसी को
फिक्र है
मुरझाये हुए गुलाब की,
ना जाने क्या हुआ है
आज इंसान को
भूल कर मुस्कुराना
ओढ़ ली है
चादर विषाद की!
माथे पर सलवटें लिए
जवाब देंहटाएंशिखर पर
चढ़ने को बेताब है,
सही बात अक्सर ऐसा होता है
ना जाने क्या हुआ है
जवाब देंहटाएंआज इंसान को
भूल कर मुस्कुराना
ओढ़ ली है
चादर विषाद की.....its true...?
ना जाने क्या हुआ है
जवाब देंहटाएंआज इंसान को
भूल कर मुस्कुराना
ओढ़ ली है
चादर विषाद की!kyonki andar me rah gai hai sirf bhautik chaah
सच बयान करती हुई खुबसुरत रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंसटीक रचना ... अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंachchhi abhivyakti
जवाब देंहटाएंना जाने क्या हुआ है
जवाब देंहटाएंआज इंसान को
भूल कर मुस्कुराना
ओढ़ ली है
चादर विषाद की,
.....bahut sundar abhivyakti...utkrist rachna.
ना जाने क्या हुआ है
जवाब देंहटाएंआज इंसान को
भूल कर मुस्कुराना
ओढ़ ली है
चादर विषाद की...सही कहा आप ने...सुन्दर अभिव्यक्ति....
मुस्काने के सपने भी नहीं आते आजकल ...सच है आपकी रचना में
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.
जवाब देंहटाएंसादर
गुरु ऑफ जॉय से मिलने के बाद भी यह शिकायत !
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब लगा! बधाई!
जवाब देंहटाएंबदला
जवाब देंहटाएंबदली फितरत
बदल गई है
मुस्कराहट उसकी
anu
इन्सान बदला
जवाब देंहटाएंबदली फितरत
बदल गई है
मुस्कराहट उसकी
हम खुद हँसना भूल गए हैं और हंसाने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें नीलेश !
हाँ बताओ तो ऐसा क्यों है?लिखी तो बात सच्ची है पर....जवाब भी तुम ही जानते हो.
जवाब देंहटाएंbhut shi kha hai .
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