शनिवार, 12 मार्च 2011

जज़्बात

ऐ खुदा
मर रहे हैं
मेरे जज़्बात
बचा ले इन्हें, 


ज़िन्दगी ने दिए हैं
जो ज़ख्म
उन्हें रहने दे
इसी तरह
बहने दे लहू
और दर्द से
तड़पने दे मुझे,


मुझे तो 
जीने के लिए
सिर्फ दर्द और
जज़्बात की
जरुरत है!

17 टिप्‍पणियां:

  1. जिसका नाम ही सद चिद आनंद है उससे पीड़ा मांगी तो सोच लीजिए क्या हश्र होगा ? वह तो दर्द को दूर करना जानता है....

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  2. क्या बात है जीने के लिए सिर्फ जज्बात और दर्द कितनी सीमित मांग है आपकी !!!

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  3. जज़्बात होते हैं तो दर्द अपने आप आ जाता है ...और इनके बिना ज़िंदगी कहाँ ...खूबसूरत रचना

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  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. दर्द भी जीने का एहसास दिलाते हैं !

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  6. sundar abhivyakti ,samvedana ka put raikhik rup se
    prakirnit hota hai . achha prayas . aabhar .

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  7. दर्द और जज्बात ,जिंदगी के अहम हिस्से हैं

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  8. ज़िन्दगी ने दिए हैं
    जो ज़ख्म
    उन्हें रहने दे
    इसी तरह
    बहने दे लहू
    और दर्द से
    तड़पने दे मुझे,
    मुझे तो
    जीने के लिए
    सिर्फ दर्द और
    जज़्बात की
    जरुरत है!'
    इंइंइंइंइंइंइंइंइं ये क्या है? जवान मर्द हो,दुखो से घबराने या हताश होने की उम्र है ये? क्यों निराशा,हताशा,उदासी के गीत रचते हो? धीरे धीरे ये हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं और....अकेले हम नही डूबते .हमारे साथ सब कुछ डूब जाता है हमारा.
    मुझे नही अच्छी लगती इस तरह की रचनाएँ.
    ईश्वर से मांगना है तो हिम्मत,साहस और जिंदगी को मिसाल बना के जीने का आशीर्वाद माँगा होता.
    गंदा बच्चा!

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  9. बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
    आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  10. वाह क्या बात है ...बहुत सुन्दर कविता !

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NILESH MATHUR

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