आसमान से उतरी
परी थी वो
परी थी वो
न जाने कितने
ख्वाब थे पलकों में,
चकित थी वो
ठहरे हुए पानी में
अपने सौंदर्य को देख ,
छूने की कोशिस में
बिखर गया
उसका प्रतिबिम्ब,
पलकों से
दो बूंद आंसू भी
गिरे झील में
लेकिन
उन आंसुओं का
उन आंसुओं का
कोई वजूद न था,
क्योंकि
ये झील तो
ना जाने कितने
आँसुओं से
मिलकर बनी है,
न जाने कितनी परियाँ
उतरती रही हैं
आसमान से
निरंतर..........
और इसी
झील के किनारे
बहाती रही है आँसू
सदियों से...............
udasee bharee kavita man kee maatee nam kar gayee..
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut sundar bhavabhivyakti ..
जवाब देंहटाएंwah .......khoobsurat kavita
जवाब देंहटाएंपरिकथा सी लगी यह नज़्म ...
जवाब देंहटाएंखुबसुरत नज्म। बेहतरीन एहसास। आभार।
जवाब देंहटाएंbahut sundar...photo superb
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए बधाई नीलेश !!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंछूने की कोशिस में
बिखर गया
उसका प्रतिबिम्ब...
खूबसूरत अभिव्यक्ति
.
पढ़कर लगा कि हर सुंदरता प्रतिबिम्ब की तरह ही तो है छूने की कोशिश में खो जाती है ! बहुत सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंvery beautiful..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन एहसास........खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंsundar bahur sundar
जवाब देंहटाएंकुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...नवरात्रा की आप को शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी सी रचना...
जवाब देंहटाएंवाह खूबसूरत कविता ....अहसास ही अहसास :)))
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