(1)
शमा रात भर जलती रही
रात बेरहम ढलती नहीं
भोर की किरणों ने
बहुत देर कर दी
ना जाने कितने परवाने जल मरे!
(2)
सर्दियों की रात
बन गयी है
ज़िन्दगी मेरी
लम्बी और लम्बी
होती जा रही है!
(3)
शायद मौत
(4)
(5)
उजड़े हुए चमन का
एक फूल हूँ मैं
माली भी देख कर
नज़रें चुरा लेता है अब!
(6)
मेरी कब्र पे
शमा मत जलाना
मुझे अँधेरे से
मुहब्बत है!
(7)
मुझे कब्र में
चैन से सोने देना
ओ महबूबा मेरी
मैं तेरी नाजो अदा से
तंग आ चुका हूँ!
(8)
चाँद ने
घूँघट उठा कर
जब देखा ज़मी को
हुस्न बिखरा था
हर तरफ!
शमा रात भर जलती रही
रात बेरहम ढलती नहीं
भोर की किरणों ने
बहुत देर कर दी
ना जाने कितने परवाने जल मरे!
(2)
सर्दियों की रात
बन गयी है
ज़िन्दगी मेरी
लम्बी और लम्बी
होती जा रही है!
(3)
शायद मौत
ज़िन्दगी से
ज्यादा खूबसूरत
होती होगी,
ज्यादा खूबसूरत
होती होगी,
वरना कोई
क्यों मरता बेमौत!
(4)
निगाहों से
क़त्ल करते हैं वो
और बाइज्ज़त बरी
हो जाते हैं!
(5)
उजड़े हुए चमन का
एक फूल हूँ मैं
माली भी देख कर
नज़रें चुरा लेता है अब!
(6)
मेरी कब्र पे
शमा मत जलाना
मुझे अँधेरे से
मुहब्बत है!
(7)
मुझे कब्र में
चैन से सोने देना
ओ महबूबा मेरी
मैं तेरी नाजो अदा से
तंग आ चुका हूँ!
(8)
चाँद ने
घूँघट उठा कर
जब देखा ज़मी को
हुस्न बिखरा था
हर तरफ!
शायद मौत
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी से
ज्यादा खूबसूरत
होती होगी,
वरना कोई
क्यों मरता बेमौत!
kya baat kahi hai !
निगाहों से
जवाब देंहटाएंक़त्ल करते हैं वो
और बाइज्ज़त बरी
हो जाते हैं!
यही तो अदा होती है हुस्न की………………बहुत सुन्दर क्षणिकायें।
नीलेश माथुर जी!
जवाब देंहटाएंआज अचानक आपके ब्लाग पर आना हुआ। कई प्रस्तुतियाँ पढ़ी। जीवन के चटक और फीके दोनों प्रकार के भावों का समावेश है इन रचनाओं में। प्रभावकारी लेखन के लिए बधाई। कृपया पर्यावरण और बसंत पर ये दोहे पढ़िए......
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गाँव-गाँव घर-घ्रर मिलें, दो ही प्रमुख हकीम।
आँगन मिस तुलसी मिलें, बाहर मिस्टर नीम॥
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
शायद मौत
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी से
ज्यादा खूबसूरत
होती होगी,
वरना कोई
क्यों मरता बेमौत!
क्या खूब...बहुत सुन्दर
bahur sundar ...mathur ji...
जवाब देंहटाएंhar ek kshnika lajwab..
…बहुत सुन्दर क्षणिकायें।
जवाब देंहटाएं.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
चाँद ने
जवाब देंहटाएंघूँघट उठा कर
जब देखा ज़मी को
हुस्न बिखरा था
हर तरफ!
...सारा जहां खूबसूरत है!
अच्छी क्षणिकाएं ...धन्यवाद
wah wah ........ati sundar
जवाब देंहटाएंeach word is loaded with philosophical meaning..nice one.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बड़ी सुन्दर क्षणिकाएं ... क्या बात है...
जवाब देंहटाएंक्षण भर में चमकी और सब कुछ कह गई.
जवाब देंहटाएंवाह. अनुपम प्रस्तुति...
nilesh ji...............aapki saari kshnikaayein ek se badh kar ek hain.
जवाब देंहटाएंbahut bahut badhaai.......
bahut bsunder.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति,सुन्दर क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंaaj bas yunhi sabke blog dekhne nikli thi aur yahan bhi aakarthehar gayi..bahut sunder blog hai aapka.
जवाब देंहटाएंमेरी कब्र पे
शमा मत जलाना
मुझे अँधेरे से
मुहब्बत है!
bahut guftagu ki din ke ujalon main sabse,
ab andheron main khud se rubaru hone do.
बहुत सुन्दर क्षणिकाए.... खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर क्षणिकाए
जवाब देंहटाएंजनमदिन की बधाई और शुभकामनाएं !
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंनीलेश माथुर जी!आदत.. मुस्कुराने की ओर से जन्मदिन की ढेरो शुभकामनाये..
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत ..............बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंHappy Birthday 2 u.Happy Birthday 2 u. Happy Birthday 2 Nilesh ji.
जवाब देंहटाएंsabhi rachnaaon ka alag-alag rang hai...janmdin ki der se hi sahi badhai...sagar main ek lahar uthi etre naam ki..........!!jgd
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