आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
शनिवार, 27 जुलाई 2019
मज़दूर
हथौड़ा चला, चलता रहा
छेनी भी मचलती रही
चोट पर चोट माथे से टपकता पसीना, पर वो हाथ रुकते नहीं वो हाथ थकते नहीं जिन्होने थामी है हथौड़ा और छेनी, चंद सिक्कों की आस में अनवरत चलते वो हाथ आग उगलते सूरज को ललकारते वो हाथ, क्या देखे हैं तुमने
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