शनिवार, 27 जुलाई 2019

मज़दूर




हथौड़ा चला, चलता रहा
छेनी भी मचलती रही
चोट पर चोट 
माथे से टपकता पसीना,
पर वो हाथ रुकते नहीं
वो हाथ थकते नहीं
जिन्होने थामी है
हथौड़ा और छेनी,
चंद सिक्कों की आस में
अनवरत चलते वो हाथ
आग उगलते सूरज को
ललकारते वो हाथ,
क्या देखे हैं तुमने
कभी ध्यान से वो हाथ??

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NILESH MATHUR

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