ये जो उलझनें हैं जीवन की
मुझे इनके पार जाना है
कुछ पाने की चाहत है
कही दूर खो जाना है,
थक चुका अब तन
और भटक रहा है मन
वो कौन सा है पथ
जहाँ मुझे जाना है और मंज़िल को पाना है,
जीवन मरण के इस चक्र से
अब मुक्त हो जाना है
फिर नहीं आना है
दूर कहीं खो जाना है,
अब तक चला जिस पथ
उस से पार जाना है
काँटों भरी हो राह
या फिर फूल बिछे हों
अब नहीं घबराना है
दूर कहीं खो जाना है
दूर कहीं खो जाना है//
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 19 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंक्या बात..👍👌
जवाब देंहटाएंजीवन पथ पर चलते ही जाना हैं
यही हैं रीत।
दूर जाने की की चाहत ही उलझन बनी हुई है।
जवाब देंहटाएंया तो चल दो
या अपने अंदर ही गहरे में उतर जाओ।
सुंदर अल्फ़ाज़
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसिद्धत्व की चिर अभिलाषा लिये शुभ्र भावना।
जवाब देंहटाएंपावन।
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंThanks for providing great info
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thanks for sharing this valuable article and really great post...
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