आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
बुधवार, 6 मार्च 2013
प्रकृति
ईश्वर अगर तुम हो कहीं तो सो जाना ओढ़कर चादर वहीं तुमने जो सृष्टि रची उसका नाश कर रहे हम सर्वत्र विनाश कर रहे हम मत देखना नेत्र खोलकर इसका जो हाल कर रहे हम।
वाह ...खूबसूरत शब्द रचना
जवाब देंहटाएंवॉव नीलेश जी..बहुत अच्छा लिखा है..मै कमेंट सिफ इस रचना पर कर रही हूं...पर आपकी हर रचना बहुत खूबसूरत और सारगर्भित है...
जवाब देंहटाएंhttp://socialissues.jagranjunction.com/2013/06/15/%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A5%8C%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE/
धन्यवाद
हटाएंbahut sahi kaha hai ..
जवाब देंहटाएंमत देखना नेत्र खोलकर
इसका जो हाल कर रहे हम।
हम ही जिम्मेदार हैं...
जवाब देंहटाएंGreat post thaanks
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