मंगलवार, 9 अगस्त 2011

वर्ष २१०० की एक कविता



इंडियन आयल की तरंग पत्रिका में इंग्लिश में लिखा हुआ कुछ इस तरह का पढ़ा था जिस से प्रेरित हो कर ये पंक्तियाँ लिखी हैं...


आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर 
अस्सी साल का वृद्ध दिख रहा हूँ
और खुद को अस्सी का ही 
महसूस भी कर रहा हूँ
लेकिन फिर भी खुशकिस्मत हूँ
आज बहुत कम लोग हैं जो
पचास को पार करते हैं,


मुझे याद है
जब मैं छोटा था
बगीचों में बहुत से पेड़ 
और घरों में बगीचे हुआ करते थे 
झरने और नदियाँ बहा करती थी
रिमझिम बारिश हुआ करती थी,


मुझे याद हैं
बचपन में मैं बहुत सारे पानी से
नहाया करता था
लेकिन आज भीगे हुए तौलिये से
बदन पौंछता हूँ
अपनी पचासवीं सालगिरह पर
मेरी पेंसन का एक बड़ा हिस्सा
सिर्फ पानी खरीदने में खर्च होता है
फिर भी जरुरत जितना नहीं मिलता,


मुझे याद है
मेरे पिता अस्सी की उम्र में भी
जवान दिखा करते थे
पर आज तो बीस वर्ष का युवा भी
चालीस का दिखता है
और औसत उम्र भी तीस की हो चुकी है,


आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर
मैं अपने बेटे को
हरे भरे घास के मैदान
खूबसूरत फूलों
और उन रंग बिरंगी मछलियों की 
कहानियाँ सुना रहा हूँ 
जो नदियों में तैरा करती थी
बता रहा हूँ उसे 
की आम और अमरुद नाम के
फल हुआ करते थे,


आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर
मैंने और मेरी पीढ़ी ने
पर्यावरण के साथ 
जो खिलवाड़ किया था 
उसके लिए शर्मिंदा हूँ
जल्द ही शायद इस धरा पर
जीवन संभव नहीं होगा
और इसके जिम्मेदार होंगे 
मैं और मेरी पीढ़ी!

21 टिप्‍पणियां:

  1. अगर समय रहते नहीं संभाले तो हाल यही होना है ....शुभकामनायें नीलेश भैया !

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  2. hmmmm badhiya imagination... filhaal to science ke rahte aisi koi sambhaavna nahin bhai ji.. average life ab har desh ki badh rhi hai.. ek research kahti hai ki 2050 tak UK ke logon ki 150 saal tak jee sakne ki sambhaavna hai.. :)
    Aam amrood khatm hone ka koi chance nahin unke bhee beej surakshit hain... fir jaroorat padi to wah aav-o-hawa bhi bana sakte hain..

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  3. haan ye sach hai ki aapke kahenusaar nature ke saath khilwaad na karen to behtar hai

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  4. यह रचना एक चेतावनी लग रही है ............

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  5. Gambheer chintan ko majboor karti hai aapki yeh RachnaGambheer chintan ko majboor karti hai aapki yeh Rachna

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  6. @दीपक मशाल जी, धन्यवाद, जिस तरह से जंगल और पहाड़ काटे जा रहे हैं और पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है अगर ये इसी तरह चलता रहा तो ये दिन भी देखना पड़ सकता है, मेरा ये लिखने का मतलब सिर्फ इतना है की हमे पर्यावरण को लेकर सचेत रहना चाहिए वरना ऐसा भी हो सकता है।

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  7. वह दिन दूर नहीं जब यही सब आने वाली पीढ़ी के साथ होने वाला है, पर्यावरण के प्रति हरेक को जागरूक रहना ही होगा... सुंदर कविता के लिए बधाई

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  8. ऐसे में खेत खलियान.....और फसलो की बाते तो बेमानी सी हो जाएगी ....हर तरफ कंक्रीट का जंगल दिखेगा ...उफ़...भयंकर होती स्थिति ......

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  9. अच्छी चेतावनी दी है ।
    हालाँकि लाइफ expectancy तो बढ़ रही है । लेकिन ये इसीलिए ताकि हम अपनी बर्बादी का मंज़र खुद देख सकें ।
    ये काला बैक ग्राउंड थोडा औड लग रहा है भाई ।

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  10. गहन भावों की सुन्दर प्रस्तुति ....

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  11. उम्दा सोच
    के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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  12. बहुत सुन्दर रचना , सार्थक प्रस्तुति
    स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं .

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .

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  13. स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. आपकी पोस्ट "ब्लोगर्स मीट वीकली "{४) के मंच पर शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना है /सोमवार १५/०८/११ को आपब्लोगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं /

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  16. आज अपनी पचासवीं सालगिरह पर
    मैंने और मेरी पीढ़ी ने
    पर्यावरण के साथ
    जो खिलवाड़ किया था
    उसके लिए शर्मिंदा हूँ
    जल्द ही शायद इस धरा पर
    जीवन संभव नहीं होगा
    और इसके जिम्मेदार होंगे
    मैं और मेरी पीढ़ी!
    aapki rachna bahut pasand aai .swatanrata divas ki badhai .

    जवाब देंहटाएं

NILESH MATHUR

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