रविवार, 12 दिसंबर 2010

ये समर्पण है या नियति

तूँ है 
सागर की इक लहर 
और मैं सागरतट,    
तूँ चूमती है 
मुझे बार बार 
और मैं 
तुझे बाहों में ले कर 
तेरे अस्तित्व को
मिटा देता हूँ 
हर बार,
ये सिलसिला 
सदियों से चल रहा है 
और सदियों तक
यूँ ही चलता रहेगा 
ना तुम थक कर
हार मानोगी 
ना ही मैं 
कभी इनकार करूंगा 
तुम्हे बाहों में लेने से,
लेकिन प्रश्न 
तुम्हारे अस्तित्व का है
कब तक तुम 
अपने अस्तित्व को
यूँ ही मिटाती रहोगी
और मुझमे समाती रहोगी ?
ये तुम्हारा समर्पण है 
या फिर 
यही तुम्हारी नियति है ?

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर पोस्ट। शुभकामनाएं। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  2. बहुत खूबसूरत रचना..लहर तो बार बार तट तक आती है समर्पण के लिए ...

    टेक्स्ट का कलर बदल दें ..पढने में दिक्कत हो रही है ..

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  3. बेहतरीन रचना. नीलेश जी, सुन्दर कविता प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.

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  4. बहुत खूबसूरत रचना...धन्यवाद|

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  5. धन्यवाद नीलेश जी!...बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण रचना!...वाह, वाह!

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  6. Lovely poem.. n thnx for ur positive comment over ma blog.. jahaan tak Krantidoot ki baat h to ye alag alag perception ki baat h.. jo aapko sahi lage aap kahiye..jo mujhe sahi legta h wo m kahungi.. na m dusro k comments pe comment karti hu aur na hi apne comment pe feedback chahti hu.. haan meri rachna me koi kami lage kabhi to bebaak kahiyega ..
    keep writting :P

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  7. साहब, कहीं आप अपने किसी नजदीकी वाले से शिकायत तो नहीं कर रहें है ;)
    रचना बहुत अर्थपूर्ण लगी, लिखते रहिये ....

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  8. लहर तो उन्मुक्त प्रेम की बयार लिए उनफ कर आती है ... किनारे से मिलने ...
    बहुत लाजवाब एहसास है ...

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  9. समर्पण का अर्थ ही है मिटना, वास्तव में जो मिटना जानता है, वही बच जाता है !

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  10. बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  11. सुन्दर कविता...
    मेरे ब्लाग नजरिया पर आपका स्वागत है-
    http://najariya.blogspot.com/

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  12. अच्छा प्रश्न है निलेश जी .....
    इसे समर्पण माने या नियति पर दोनों एक दुसरे के पूरक हैं ....

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  13. नीलेश जी.............बहुत ही गहरे भाव लिखे हैं आपने............ बहुत बहुत ही सुन्दर

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  14. bahut hi sundar avam gahri anibhuti
    लेकिन प्रश्न
    तुम्हारे अस्तित्व का है
    कब तक तुम
    अपने अस्तित्व को
    यूँ ही मिटाती रहोगी
    और मुझमे समाती रहोगी ?
    ये तुम्हारा समर्पण है
    या फिर
    यही तुम्हारी नियति है ?
    bhut hibadhiya prastuti.
    poonam

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  15. निलेश जी , समर्पण और नियति के बीच का मिलन ..आपने बहुत महिनी से बाँच दिया ...बहुत खुबसूरत रचना .

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  16. ye sirf samarman hai kyonkee sachcha samarpan niyati kabhee nahee ho saktee hai.

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NILESH MATHUR

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