महसूस किया है
मैंने दर्द को इन दिनों,
बहुत समय बाद
खुलकर रोने का मौका
मिला है इन दिनों,
कोई सह रहा है दुःख
किसी के लिए
कोई ढाए जा रहा है सितम
किसी पर इन दिनों,
इस जिस्म से
रूह को जुदा कर सकूँ
इतना साहस भी
नहीं बचा है मुझमे इन दिनों,
जिन्हें अपना समझता रहा
उम्र भर
वही कत्ल करने पर आमाद हैं मेरा
इन दिनों,
किससे कहूँ
हाले-दिल अपना
मेरा खुदा भी मुझसे
नाराज है शायद इन दिनों !
किससे कहूँ
जवाब देंहटाएंहाले-दिल अपना
मेरा खुदा भी मुझसे
नाराज है शायद इन दिनों !
-शानदार.बहुत उम्दा!
हम तो न हंस पातें, न रो पातें है ठीक से,
जवाब देंहटाएंबस अरमानों की भरमार है इन दिनों ..
सुन्दर प्रस्तुति ..
किससे कहूँ
जवाब देंहटाएंहाले-दिल अपना
मेरा खुदा भी मुझसे
नाराज है शायद इन दिनों ...dard gahara hai...badhiya post.
कहाँ रहते हैं आज कल
जवाब देंहटाएंइन दिनों ?
एहसासों को खूबसूरती से लिखा है ..
बहुत ही सुंदर रचना है .
जवाब देंहटाएंआभार ....
बेहतरीन भावों से सजी एक बेहतरीन नज़्म|
जवाब देंहटाएंब्रह्माण्ड
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..............
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना है ..............अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंदर्द के पंक से ही खुशी का कमल खिलता है, और बढ़ जाने दें दर्द को इन दिनों!
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसा होता है। लेकिन ये दर्द ही तो हमारी निधि हैं, हमारी ताकत हैं । ये ही तो हमें जीवन संघर्ष करना सिखाते हैं ।
जवाब देंहटाएंकिससे कहूँ
जवाब देंहटाएंहाले-दिल अपना
मेरा खुदा भी मुझसे
नाराज है शायद इन दिनों !
Sach aaj Insaan ke paas kisi ka haal poochhne ka wakt hi kahaa........
Bahut sunder rachna
खुदा तो नाराज़ ही रहता है ।
जवाब देंहटाएंएक दो ज़ख्म नहीं सारा बदन है छलनी
जवाब देंहटाएंदर्द बेचारा परेशां है, कहाँ से उठे
भावनाएं ही मानवता की बुनियाद हैं. आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति है.
दर्द की मार्मिक अभिव्यक्ति ....मगर यहीं तो आपके धैर्य की परीक्षा है नीलेश ! हार्दिक शुभकामनायें !
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