मंगलवार, 15 जनवरी 2013

प्रगति के पथ पर



साभार गूगल 
नदियों का रुख मोड़ कर
पहाड़ों को भेद कर बिजली बनाएँगे 
बस्तियों को उजाड़ कर 
इमारतें बनाएँगे 
खेतों की जगह 
कारखाने बनाएँगे 
इन पहाड़ों, नदियों, खेतों, बस्तियों 
और समूची प्रकृति को रौंद कर

प्रगति के पथ पर
बढ़ना है,
क्या ये संभव है?? 

7 टिप्‍पणियां:

  1. अगर मन में ठान लों तो सब कुछ हो सकता है

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  2. विरोधाभास को दर्शाती रचना

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  3. प्रकृति के साथ चलें तो सब कुछ हो सकता है..पर उसे विजेता की तरह रौंद कर तो मानव विनाश की ओर ही जायेगा,

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  4. प्रकृति का नाश कर प्रगति संभव नहीं... अच्छी रचना, बधाई.

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  5. प्रगति के पथ पर
    बढ़ना है,
    क्या ये संभव है??
    बहुत बढ़िया है-- हाँ सब संभव है----बधाई

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  6. jenny ji se sahmat .....unhi ke shabd ek baar fir ...
    प्रकृति का नाश कर प्रगति संभव नहीं... अच्छी रचना, बधाई.

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