बुधवार, 6 मार्च 2013

प्रकृति



ईश्वर अगर तुम हो कहीं 
तो सो जाना ओढ़कर चादर वहीं 
तुमने जो सृष्टि रची
उसका नाश कर रहे हम
सर्वत्र विनाश कर रहे हम 
मत देखना नेत्र खोलकर 
इसका जो हाल कर रहे हम। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. वॉव नीलेश जी..बहुत अच्छा लिखा है..मै कमेंट सिफ इस रचना पर कर रही हूं...पर आपकी हर रचना बहुत खूबसूरत और सारगर्भित है...

    http://socialissues.jagranjunction.com/2013/06/15/%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A5%8C%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE/

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  2. bahut sahi kaha hai ..
    मत देखना नेत्र खोलकर
    इसका जो हाल कर रहे हम।

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