शुक्रवार, 19 मार्च 2010

बचपन !

हर एक इंसान के जीवन में बचपन कि यादें रहती हैं, हर बच्चा निष्पाप और निष्कपट होता है, भौतिक जीवन और अपनी लालसाओं के जाल में उलझ कर हम नैतिक अनैतिक में भेद करना भूल जाते हैं, कभी कभी मन होता है फिर से बचपन में लौट जाने का!


आओ लौट चलें बचपन में
फिर से निष्कपट हो जाएँ,
कागज कि कश्ती बनाएं
पानी में बहाएँ,


फिर से देखें वो ख्वाब 
जो कुछ अटपटे से थे
जिनमे पिता जी कि नसीहत 
और माँ के सपने थे,


आओ लौट चलें बचपन में 
फिर से बस्ता उठाएं 
और स्कूल को जाएँ
मज़हब को भूलकर
ईद और दिवाली मनाएँ
रोज सुबह वन्दे मातरम गाएँ
और सोई हुई देशभक्ति को जगाएँ,


आओ लौट चलें बचपन में
फिर से मुस्कुराएँ
छोटी छोटी खुशियों पर 
उत्सव मनाएँ
भुला कर हर गम
फिर से खिलखिलाएं,


आओ लौट चलें बचपन में
फिर से निष्कपट हो जाएँ!



2 टिप्‍पणियां:

  1. "बहुत बढ़िया नीलेश निष्कपट अभी भी हुआ जा सकता......"
    प्रणव सक्सैना
    amitraghat.blogspot.com

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  2. आओ लौट चलें बचपन में
    फिर से निष्कपट हो जाएँ!

    --
    कविता बहुत अच्छी है
    और
    सच्ची भी!
    --
    संपादक : सरस पायस (बच्चों के लिए)

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