सोमवार, 15 मार्च 2010

क्षणिकाएँ

(१) 
उधर मत देना मुझे 
खुशियाँ और सुख
मैं पहले ही 
बहुत कर्जदार हूँ !
(२)
गंगा में डुबकी लगायी 
पापों से मुक्ति पायी,
फिर नए सिरे से 
शुरू होंगे अनवरत पाप!
(३)
पिता जी ने कहा था
बेटा, सत्य के मार्ग पर चलना,
मैं चला
परन्तु फिसलन बहुत थी वहां
घुटने छिल गए!
(४)
मेरी हथेली
जिस पर सरसों नहीं उगती
वो पाना चाहती है
पल में सब कुछ!
(५
)कृतज्ञ रहूँगा मैं तुम्हारा
तुम अगर जीना सिखला दो
क्षणभंगुर इस जीवन का
अर्थ मुझे तुम बतला दो!


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