बुधवार, 24 मार्च 2010

ज़िन्दगी कुछ इस तरह

जिंदगी यूँ ही गुज़र जाती है 
बातों ही बातों में 
फिर क्यों न हम 
हर पल को जी भर के जियें,


खुशबू को 
घर के इक कोने में कैद करें 
और रंगों को बिखेर दें 
बदरंग सी राहों पर, 


अपने चेहरे से 
विषाद कि लकीरों को मिटा कर मुस्कुराएँ 
और गमगीन चेहरों को भी 
थोड़ी सी मुस्कुराहट बाँटें,


किसी के आंसुओं को 
चुरा कर उसकी पलकों से 
सराबोर कर दें उन्हें 
स्नेह कि वर्षा में,


अपने अरमानों की पतंग को 
सपनो कि डोर में पिरोकर
 मुक्त आकाश में उडाएं 
या फिर सपनों को 
पलकों में सजा लें,


रात में छत पर लेटकर 
तारों को देखें 
या फिर चांदनी में नहा कर 
अपने ह्रदय के वस्त्र बदलें 
और उत्सव मनाएँ, 


आओ हम खुशियों को 
जीवन में आमंत्रित करें 
और ज़िन्दगी को जी भर के जियें!

7 टिप्‍पणियां:

  1. आओ हम खुशियों को
    जीवन में आमंत्रित करें
    और ज़िन्दगी को जी भर के जियें

    *
    सार्थक संदेश देती रचना!!

    -

    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  2. अतुकांत शैली में ...बहुत सुंदरता से खूबसूरत भावों को समेटा आपने
    अजय कुमार झा

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  3. बेहद भोले और मासूम भाव हैं आपके ....पर दुनिया कुछ और है ...

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  4. सुशीला जी,
    ज़िन्दगी कुछ और है ये तो जानता हूँ, परन्तु एक दुनिया ऐसी भी है जहाँ अब भी सच्चाई, इमानदारी और ज़ज्बात कि क़द्र होती है, वो दुनिया है हम जैसे लिखने वाले लोगों कि दुनिया, किताबों कि दुनिया!

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  5. किसी के आंसुओं को
    चुरा कर उसकी पलकों से
    सरोबार कर दें उन्हें
    स्नेह कि वर्षा में,

    aapke khayal bahut hi khoobsurat hain...
    accha laga aapko padhna..

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  6. बेहद भोले और मासूम भाव हैं आपके ....पर दुनिया कुछ और है .

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