आवारा बादल
आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
मंगलवार, 15 जनवरी 2013
प्रगति के पथ पर
साभार गूगल
नदियों का रुख मोड़ कर
पहाड़ों को भेद कर बिजली बनाएँगे
बस्तियों को उजाड़ कर
इमारतें बनाएँगे
खेतों की जगह
कारखाने बनाएँगे
इन पहाड़ों, नदियों, खेतों, बस्तियों
और समूची प्रकृति को रौंद कर
प्रगति के पथ पर
बढ़ना है,
क्या ये संभव है??
सोमवार, 7 जनवरी 2013
कहाँ थे ये मर्द अब तक
एक दामिनी के मरने पर
इतने मर्द पैदा हुए
कि हिल गया हिंदुस्तान
कहाँ थे ये मर्द अब तक
कहाँ थे...
कहाँ थे...
कहाँ थे अब तक ।
वो बहाते हैं हम पी जाते हैं
उनके पसीने कि कमाई
हम खाते हैं
वो बहाते हैं हम पी जाते हैं
वो दो वक़्त की रोटी को
तरस जाते हैं
और हम पिज्जा बर्गर खाते हैं।
शनिवार, 5 जनवरी 2013
गज़ल
हथौड़ी और छेनी की टंकार
है संगीत उनके लिए
और हम हाथों मे जाम लिए
गज़ल सुनते हैं।
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