मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

प्रकृति

उफ़ 
ये नदियाँ पर्वत
ये पेड़ पौधे
और उस पर
ये परिंदे,
उफ़ 
ये ढलते हुए
सूर्य की किरणे
और बादलों से
निकलता चाँद,
उफ़ 
ये पक्षियों का 
कलरव
और भंवरों की गुनगुन,
उफ़ 
ये बारिश की बूंदें
और भीगता हुआ तन,
उफ़ 
ये मदहोश हवा
और प्रफुल्लित मन,
उफ़ 
ये हरी भरी वादियाँ
और लहरों का संगीत,
उफ़ 
ये सौंदर्य,
आओ प्यार करें !

11 टिप्‍पणियां:

  1. prakruti soundary kee jo bouchar aapne chodee hum bhee iseme bheeg hee gaye ......
    sunder abhivykti.

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  2. uf itni sundar bhavabhivyakti ....uf itna sundar prakrati chitran .badhai

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  3. प्रकृति का अद्भुत चित्रण किया है आपने अपनी रचना में...अति सुन्दर प्रस्तुति...

    नीरज

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  4. प्रकृति की अद्भुत अभिव्यक्ति , बधाई

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  5. bahut sundarta se aapne prakriti ka barnan kia hai....bahut khubsurat rachna...

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  6. प्रकृति का सौंदर्य ही ऐसा है...
    बहुत खूब...

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  7. उफ़
    ये सौन्दर्य!.... kyun iske saath khilwaad kerte ho !

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  8. प्रकृति का सौंदर्य है ही ऐसा कि उसके जादू से बचना बहुत कठिन है, अगर आप अन्यथा न लें तो सूरज की किरणें 'ढलती' हुई तथा 'बारिश' ठीक कर लें, आभार !

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  9. अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.

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