गुरुवार, 30 सितंबर 2010

मैं ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान

मैं ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान
मैं तो हूँ एक अदद इंसान,

जो नहीं चाहता की नालियों में बहे रक्त 
किसी हिन्दू या मुसलमान का,


ना ही शामिल हूँ मैं 
शैतानों की जमात में
और ना ही 
नफरत का सौदागर हूँ मैं, 


मैं तो चाहता हूँ 
सिर्फ प्रेम और भाईचारा 
मुझे तो मंदिर और मस्जिद में भी 
कोई फर्क नज़र नहीं आता,


और शायद हर आम आदमी
मुझ जैसा ही है 
जो हिन्दू या मुसलमान होने से पहले
एक अदद इंसान है! 
  
  

19 टिप्‍पणियां:

  1. acchee soch kee utnee hee acchee abhivykti.....

    Hum sabhee aapke sath hai.......

    saamyik rachana...

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  2. चखा जिसने वाकई में, 'मजाल' मजहब का स्वाद,
    कहता फिरता वो, "इंसान पहले, धरम आए बाद.."

    अच्छी रचना, लिखते रहिये ....

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  3. यही मैं भी कहता हूँ ....
    मैं ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान
    मैं तो हूँ एक अदद इंसान,

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  4. और शायद हर आम आदमी
    मुझ जैसा ही है
    जो हिन्दू या मुसलमान होने से पहले
    एक अदद इंसान है!
    sach keha hai..dhanyawad

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  5. मै तो एक हिन्दु हूं और एक मुसलमान की कद्र करता हूं

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  6. जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद..........गुस्ताखी माफ़ नामों में क्या रखा है निलेश जी, मेरे ब्लॉग पर आईये तो सब दायरों से बहार निकलकर सिर्फ जज्बातों को महसूस कीजिये | फूल कहाँ खिला है, इससे क्या फर्क पड़ता है, खुशबू कैसी है इससे पड़ता है ............जैसे आपकी रचना में सबसे पहले आप इंसान हैं .........फिर भी अगर ज़रूरी हो तो ग़ज़ल में तखल्लुस भी आता है आप पहले की कुछ रचनाओ में देख सकते हैं |

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  7. कद्र करते हैं आपके जज्बातों की.

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  8. वाह ! बहुत बढ़िया विचार और अभिव्यक्ति नीलेश जी ! शुभकामनायें !

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  9. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति !

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  10. बुत बना रखें है .....नमाज़ भी अदा होती है ... ;
    दिल मेरा दिल नहीं......खुदा का घर लगता है !!


    बेहद उम्दा पोस्ट ............बेहद उम्दा रचना !

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  11. भुलाए हुए हैं आजकल..कोई बात नहीं..अरे जबर्दस्ती थोड़े है..बिज़ी होंगे आप!! ख़ैर बहुत अच्छा भाव लिए हुए है आपका कबिता, मानबता का तकाजा एही है..

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  12. और शायद हर आम आदमी
    मुझ जैसा ही है
    जो हिन्दू या मुसलमान होने से पहले
    एक अदद इंसान है!
    बिलकुल सही कहा । ये सब तो कुर्सी और अपने नाम को चमकाने की लडाई है धर्म से किसी का लेना देना नही। बहुत अच्छी रचना। आशीर्वाद।

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  13. मैं ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान

    मैं तो हूँ एक अदद इंसान,

    आजकल इंसान बने रहना भी कितना कठिन हो गया है.

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  14. मैं तो चाहता हूँ
    सिर्फ प्रेम और भाईचारा
    मुझे तो मंदिर और मस्जिद में भी
    कोई फर्क नज़र नहीं आता,


    और शायद हर आम आदमी
    मुझ जैसा ही है
    जो हिन्दू या मुसलमान होने से पहले
    एक अदद इंसान है!
    ekkhoobsurat sadesh deti rachna.
    bahut bahut badhai.
    poonam

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