शनिवार, 7 अगस्त 2010

श्री श्री के चरणों में समर्पित



जीने कि कला 
सिखलाते हैं वो
भटके हुए को 
राह दिखलाते है वो,
होठों पर मुस्कान
सजाते हैं वो
ह्रदय में प्रेम के फूल
खिलाते हैं वो, 
पाषाण ह्रदय 
पिघला कर 
प्रेम का दरिया 
बहाते है वो, 
अंधेरों से जब घिर जाते हैं हम  
तब रोशनी बन कर आते हैं वो
और अँधेरे का विनाश कर
भोर कि पहली किरण
बन जाते हैं वो!



10 टिप्‍पणियां:

  1. भावों को सुन्दर रूप दिया है ...जय गुरुदेव

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  2. Nilesh ji aapne Shri-Shri Ravishankar ji ke baare men bahut achha likha hai. Hume ye post pasand aayi. AApka prayaas safal raha.

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  3. तो यहाँ भी श्री श्री का जादू चल गया है! उनके बारे में जितना कहें कम है. जय गुरुदेव !

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  4. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! जय जय गुरुदेव!

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  5. ek sundar rachna.....
    Meri Nayi Kavita Padne Ke Liye Blog Par Swaagat hai aapka......

    A Silent Silence : Ye Paisa..

    Banned Area News : Fat employees take more time off work

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  6. आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

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  7. भारत के महान संत पुरुषों की की श्रेणी में से इन आचार्य श्रेष्ठ को प्रणाम !शुभकामनायें

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