गुरुवार, 22 जुलाई 2010

रेत

Add caption
रेत पर क़दमों के निशान 
एक पल में मिटा देती है हवाएं 

इसी तरह मिटा दिया था
हवा के इक झोंके ने मेरा वजूद,

और मैं ढूंढता फिर रहा हूँ 
अपने क़दमों के निशान
उसी रेत पर
जिस पर चला था दूर तक ,

और साथ ही तलाश 
अपने वजूद की,

रेत और हवाओं से 
बस यही रिश्ता है मेरा!

10 टिप्‍पणियां:

  1. इंसान का जीबन यात्रा में न जाने केतना बार उसका वजूद बिखरता है अऊर केतना बार उसका कदम का निसान मिट जाता है... हर पल जनम लेने वाला अऊर सतत मृत्यु का स्मरन करने वाला ही अमरता को प्राप्त करता है... नीलेस बाबू , आपका बापसी पर स्वागत!!

    जवाब देंहटाएं
  2. रेत और हवाओं से
    बस यही रिश्ता है मेरा!
    रेत पर निशान पड़ते ही हवाएँ बेशक मिटा दें पर कदम कहाँ मानते हैं वे निशान छोड़ते ही रहते हैं
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. .
    और मैं ढूंढता फिर रहा हूँ
    अपने क़दमों के निशान

    Beautiful creation.

    zealzen.blogspot.com

    Divya-zeal

    जवाब देंहटाएं
  4. bahut sunder abhivykti......havaon ke rukh ka to koi saanee nahee.......kab kis aur bahne lage toofano ka rukh badlne kee kshamata hai inme.......

    maira tatpary shav se tha............ aap fir se padiyegaa........
    aabhar

    जवाब देंहटाएं
  5. रेत और हवाओं से
    बस यही रिश्ता है मेरा!
    क्या बात है......नज़्म खूबसूरत है . हम पहली बार आपके ब्लॉग पर आये मगर लग रहा है कि लगातार आते रहना पड़ेगा....!

    जवाब देंहटाएं
  6. bahut sunder abhi vyakati .
    nishan reh jayen to behadd taqleef dete hain..achha hai , mit jaayen gar nishaan .
    naye nishaan banaaate chalo.

    जवाब देंहटाएं
  7. रेत और हवाओं से
    बस यही रिश्ता है मेरा!
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं
  8. रेत और हवा के समबन्ध का आलंबन लेकर जो आपने अपने मनोभावों को प्रकट किया है उसमे जीवन का मर्म छिपा है..
    असलियत यह है कि आपके व्यक्तिव की दृढ़ता ने रेत और हवा के बीच जंग छेड़ दी है. हवा आपके निशाँ को अपने साथ उड़ा ले जाना चाहती है तो वहीँ रेत आपके निशान अपने ह्रदय में समेटने की कोशिश में है...और दोनों कहती फिर रही हैं कि
    "मेरे वजूद में तू आज यूँ उतर आये,मैं देखूं आइना और तू मुझे नज़र आये....."

    जवाब देंहटाएं