(१)
मैं ओस की बूंदें बन
पत्तों पर लुढ़कता रहा
और वो
भंवरा बन फूलों पर
मंडराते रहे!
(२)
मैं परवाना बन
शमा पर मंडराता रहा
और वो
लौ बनकर
मुझे जलाते रहे!
(३)
उनके आंसुओं को हमने
ज़मी ना छूने दी कभी
और उन्होंने
हमारे ज़ख्म की
मरहम तक ना की!
(४)
उन्होंने कभी
नज़रें उठाकर ना देखा हमें
और हम
बंद आँखों से भी
उनका दीदार करते रहे!
(५)
वो देते रहे दर्द
हम सहते रहे
उनकी बेवफाई को भी
हम वफ़ा कहते रहे!
(६)
हम उनकी
मासूमियत के कायल थे
पर वो
बेरहमी की मूरत निकले!
(७)
उन्होंने रिश्तों को
कभी अहमियत ना दी
और हमने
रिश्तों के सहारे
ज़िन्दगी गुज़ार दी!