शुक्रवार, 7 मई 2010

विभाजन की त्रासदी

एक मुल्क के सीने पर
जब तलवार चल रही थी
तब आसमाँ रो रहा था
और ज़मी चीख रही थी,


चीर कर सीने को
खून की एक लकीर उभर आई थी
उसे ही कुछ लोगों ने
सरहद मान लिया था,


उस लकीर के एक तरफ
जिस्म
और दूसरी तरफ
रूह थी,


पर कुछ इंसान
जिन्होंने जिस्म से रूह को
जुदा किया था
वो होठो में सिगार
और विलायती वस्त्र पहन
कहकहे लगा रहे थे,


और कई तो
फिरंगी औरतों संग
तस्वीर खिचवा रहे थे,
और भगत सिंह को
डाकू कहने वाले
मौन धारण किये
अनशन पर बैठे थे,


शायद वो इंसान नहीं थे
क्योंकि विभाजन की त्रासदी से
वो अनजान नहीं थे!

27 टिप्‍पणियां:

  1. उस लकीर के एक तरफ
    जिस्म
    और दूसरी तरफ
    रूह थी,
    रूह तक हिला दिया इस जिस्म और रूह के विभाजन ने
    इतनी गहराई है इस रचना में काँप जाता है मन
    और फिर जब दर्पण दिखाते हैं इन शब्दों से
    पर कुछ इंसान
    जिन्होंने जिस्म से रूह को
    जुदा किया था
    वो होठो में सिगार
    और विलायती वस्त्र पहन
    कहकहे लगा रहे थे,
    उफ! संवेदनशीलता की हद कहाँ है?

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  2. और फिर प्रोफाईल के शब्द 'ज़मीन से जुड़ा हुआ अदना सा इंसान हूँ'
    जब इंसान जमीन से जुड़ गया तो अदना कैसे हो सकता है?
    क्षमा करें!

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  3. andar tak hila diya...sab kuch keh gaye...gaandhi nehru ka sach to dheere dheere sab samajhne lage hai...aaj ham jo kuch jhel rahe hain uske jimmedar wahi napunsak log the...

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  4. शायद वो इंसान नहीं थे
    क्योंकि विभाजन की त्रासदी से
    वो अनजान नहीं थे


    सही लिखा... रामधारी सिंह ’दिनकर’ जी की कुछ लाईनें हैं...
    समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
    जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।

    सो उनका इंसाफ़ तो समय नें कर दिया है... और जो बचे हैं उनका भी इंसाफ़ समय ही कर देगा.

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  5. सबसे पहले तो सदर वन्दे एवं आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार...आपने सुझाव दिया इसके लिए आपकी भी धन्यवाद ....भारत और पाकिस्तान के लिए माँ बेटे और दो भियियो कि उपमा तो सुनी थी...पर आपने तो गजब ढाया....एक जिस्म और दूजा रूह..कविता में आपका देशप्रेम भी झलकता हैं.. बहुत अच्छा ब्लॉग बनाया हैं आपने....जय श्री कृष्ण

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  6. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  7. विभाजन की त्रासदी को सही शब्द दिए हैं...अच्छी प्रस्तुति

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  8. बेहद सुन्दर भाव लिए आपने शानदार रूप से रचना प्रस्तुत किया है! लाजवाब! बहुत बहुत बधाई!

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  9. एकदम खामोस कर देने वालाल बात बोले हैं आप... जे ट्रेजिदी आप बताए हैं ऊझेलने से ही समझ में आता है..कमाल है!!

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  10. एक दम स्टीक और कटु सत्य।

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  11. बहुत खूब .....!!
    निलेश जी आपकी लेखनी रंग दिखने लगी है .....!!

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  12. उस लकीर के एक तरफ
    जिस्म
    और दूसरी तरफ
    रूह थी
    bahut behtar kaha hai .

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  13. बेहतरीन रचना..

    दो दिन से टोरंटो में नहीं था, अतः देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी.

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  14. एक मुल्क के सीने पर
    जब तलवार चल रही थी
    तब आसमाँ रो रहा था
    और ज़मी चीख रही थी,
    zabardast rachna ,ati uttam .

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  15. Baujee,
    Suit walon ke sath dhoti wale baba ko bhi lapet liya!
    Bahut achha! Matlab, sach mein achha!

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  16. 'शायद वो इंसान नहीं थे
    क्योंकि विभाजन की त्रासदी से
    वो अनजान नहीं थे! '

    - सुन्दर.

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  17. उस लकीर के एक तरफ
    जिस्म
    और दूसरी तरफ
    रूह थी,...... is vyatha ko ek mann hi jaan sakta hai aur kah sakta hai

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  18. शायद वो इंसान नहीं थे
    क्योंकि विभाजन की त्रासदी से
    वो अनजान नहीं थे |

    in shabdo mein jo sachchai hai use jan pana sachche dilwalon ka kam hai.

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  19. उस लकीर के एक तरफ
    जिस्म
    और दूसरी तरफ
    रूह थी,
    jism aur ruh aaj bhi milna chahten hai paranthu aj ke yah sambhaw nahi hai.
    Email id :syed.faruk9@gmail.com

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