सोमवार, 19 अप्रैल 2010

मेरी कमीज !

मेरी कमीज 
जिसकी जेब 
अक्सर खाली रहती है
और मेरी कंगाली पर 
हंसती है,


मैं रोज सुबह 
उसे पहनता हूँ
रात को पीट पीट कर 
धोता हूँ 
और निचोड़कर सुखा देता हूँ
शायद उसे 
हंसने की सजा देता हूँ !

9 टिप्‍पणियां:

  1. सही है..और पीटो!!

    बढ़िया रचना.

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  2. or is mahngai ke jamane me kab bhi kya sakte he ham,

    bahut khub


    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  3. मैं रोज सुबह
    उसे पहनता हूँ
    रात को पीट पीट कर
    धोता हूँ
    और निचोड़कर सुखा देता हूँ
    शायद उसे
    हंसने की सजा देता हूँ !
    वाह!! बहुत ही सुन्दर. बधाई.

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  4. बहुत सुंदर .....!!

    निलेश जी समीर जी की टिप्पणी पे गौर कीजियेगा ....!!

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  5. खूब लिखी अंकल जी...
    ________________
    'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर

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  6. समीर जी और आपकी टिपण्णी को कौन नज़रअंदाज कर सकता है

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