मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

मेरी पतलून !

आप भी सोचेंगे की ये क्या कमीज, पतलून, पर लिखने लगा, लेकिन एक समय था जब मेरी आर्थिक स्तिथि बहुत खराब थी और मुझे कपडे वगैरा भी खरीदने के लिए सोचना पड़ता था, लिखने का शौक तो सदा से था सो उस कठिन समय में कमीज, पतलून, जूता, चूल्हा, ट्रांजिस्टर जहाँ भी नज़र जाती कुछ ना कुछ लिख देता था, इस तरह ये एक श्रंखला सी बन गयी वही आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है आप मेरी भावनाओं को समझेंगे ! मैं इसे एक श्रंखला के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ !


मेरी पतलून .....
मेरी पतलून 
जो कई जगह से फट चुकी है
उसकी उम्र भी 
कब की खत्म हो चुकी है,


फिर भी वो बेचारी
दम तोड़ते हुए भी
मेरी नग्नता को 
यथासंभव ढक लेती है,


परन्तु मैं 
फिर भी नयी पतलून खरीदने को आतुर हूँ !

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