रविवार, 18 अप्रैल 2010

महानगर का घर !

मेरे घर में 
हवा के झोंकों 
और 
सूर्य कि किरणों का आना 
सख्त मना है,

क्योंकि मेरा घर 
पूर्णतया वातानुकूलित है, 


मेरे घर के ऊपर 
ना छत है 
ना पैरों तले ज़मीन ,


मैं महानगर की 
एक बहुमंजिला इमारत में रहता हूँ !

8 टिप्‍पणियां:

  1. shehr ki badalti tasveer kya sahi dhang se pesh ki....

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  2. कितनी सच्ची बात लिखी आपने !!!!!!, और आपने मेरी कविता पर जो अपनी सवेदना उड़ेली उसके लिए हार्दिक आभार ।

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  3. मेरे घर में
    हवा के झोंकों
    और
    सूर्य कि किरणों का आना
    सख्त मना है,
    मैं महानगर की
    एक बहुमंजिला इमारत में रहता हूँ
    ....आपने महानगरों में जीते-जागते लोगों की घुटन भरे माहौल में जीने की मज़बूरी का बखूबी चित्रण प्रस्तुत किया है....... क्या करें! इसी का नाम जिंदगी है ....

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  4. वाह सर क्या बात कही आपने..बिलकुल सच है..

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  5. मेरे घर में
    हवा के झोंकों
    और
    सूर्य कि किरणों का आना
    सख्त मना है,
    क्योंकि मेरा घर
    पूर्णतया वातानुकूलित है,
    मेरे घर के ऊपर
    ना छत है
    ना पैरों तले ज़मीन ,
    मैं महानगर की
    एक बहुमंजिला इमारत में रहता हूँ !

    कुछ दुविधा रह गयी निलेश जी ......

    बहुमंजिला इमारत में भी हैं और छत और जमीन भी नहीं ....ऐसे
    में सूरज को भी मनाही ....???

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  6. हरकीरत जी, प्रणाम,
    समय समय पर आपकी टिप्पणी मिलती है, आभारी हूँ,
    गाँव में और शहर में भी पहले जो घर हुआ करते थे , वो अपनी ज़मीन पर होते थे और उनमे छत भी अपनी होती थी, महानगरों की बहुमंजिला इमारतों में आजकल जो फ्लैट होते हैं, उनमे न तो अपनी ज़मीन है और ना ही छत अपनी होती है, कभी छत पर सोने का मन हो तो भी नहीं सो सकते, आँगन तो होता नहीं जो धुप आ सके, और भी बहुत सी बातें है, बस उसी पीड़ा को शब्द देने का प्रयास किया है.

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  7. वाह सर क्या बात कही आपने..बिलकुल सच है..

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