शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

धुंधला चुके चित्र !

मेरा एक बहुत पुराना देहाती मित्र मुझे लगभग २० साल बाद बहुत ही खस्ता हाल में मिला, उसे मुझ से मिलकर बहुत खुशी हुई,
 पर ना जाने क्यों मैं उसे देख कर शर्म महसूस करने लगा, बाद में इस पर चिंतन करते हुए कुछ पंक्तियाँ लिखी, प्रस्तुत है ......


माना कि तुम 
मेरे पुराने मित्र हो 
पर मेरे अन्तःस्थल के 
धुंधला चुके चित्र हो,


अब मैं तुम्हारा 
वो मित्र नहीं रहा 
जिसे तुम जानते थे
पहचानते थे,


अब तो मैं
महानगर में रेंगता 
वो कीड़ा हूँ 
जो भावनाओं में नहीं बहता ! 

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