शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

गंगा स्नान

हरिद्वार में हर कि पौडी पर बैठा था तो कुछ इस तरह के विचार मन में आये थे !
(१)
गंगा में डुबकी लगाई
पापों से मुक्ति पायी ,
फिर शुरू होंगे
नए सिरे से
अनवरत पाप!

(२)
हर कि पौडी
हर लेती हर पाप
और हम
फिर से तरोताजा
और पाप करने को !

4 टिप्‍पणियां:

  1. हरिद्वार की पौडी पर बैठकर जो विचार आये उन्हें शब्दों में ढालने की बधाई...... चिन्तन्युक्त कविता...

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  2. गंगा में डुबकी लगाई
    पापों से मुक्ति पायी ,
    फिर शुरू होंगे
    नए सिरे से
    अनवरत पाप!

    waah.....!!

    निलेश जी दोनों ही क्षनिकाएं बहुत बढिया लिखी हैं आपने .....!!

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  3. dono hi kshanikayen bahut hi achchhe vyangya hain Neelesh ji, bahut chhote se shool hain lekin andar tak ghav karne wale...
    Jai Hind

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