शनिवार, 17 अक्टूबर 2009
मेरा शहर "बीकानेर"(छोटी काशी)
मैं अपने बारे में तो बता चुका, अब मैं अपने शहर जहाँ मैं पला बढा और जो मेरी खुशियों और दुखों का साक्षी रहा है के बारे में थोडा बहुत बता देता हूँ, बीकानेर जिसे कि लोग छोटी काशी भी कहते हैं क्योकि वहां कि गलियां और पुरानी इमारतें और वहां के मस्तमौला लोग मिलते जुलते ही हैं, लगभा ५०० साल पुराना है ये शहर और यहाँ के किले परकोटे साक्षी हैं इसके गर्वीले इतिहास के, शहर के बीचोबीच यहाँ का किला जूनागढ़ सीना ताने खडा है और परकोटे के अन्दर कि पुरानी हवेलियों कि बेजोड़ कारीगरी तो देखते ही बनती है, पुराने शहर में ब्राह्मणों कि बहुतायत है वैसे तो सभी जातियों के लोग हैं यहाँ पर मुसलमान भी काफी संख्या में है, लेकिन हिन्दू मुस्लिम सभी आपस में बहुत ही भाईचारे के साथ रहते हैं, पुरे हिंदुस्तान में इतने साम्प्रदायिक दंगे हुए बाबरी मस्जिद प्रकरण हुआ लेकिन यहाँ पर उसका कोई असर नहीं हुआ, यहाँ हिन्दू और मुस्लिम आज भी एक थाली में खाते हैं और एक साथ मिलकर सभी त्यौहार मनाते हैं, शाम होते होते यहाँ कि फिजा में मस्ती सी छाने लगती है, शहर में छोटे छोटे चौक हैं और हर चौक में पाटे लगे हुए हैं, जिन पर शाम होते ही लोग जमा हो जाते हैं और फिर गपशप और मौज मस्ती कि दौर चालू हो जाते हैं, एक तरफ कहीं भांग घुट रही होती है, यहाँ के लोग भांग के काफी शौकीन हैं, यहाँ खाने पीने के भी बहुत मजे हैं, मलाई रबड़ी पकौडे मिठाइयां तरह तरह कि चीजें मिलती है कुछ खाने पीने कि दुकाने तो रात १० बजे के बाद खुलती है, वैसे तो सारी दुकाने १२ से १ बजे तक खुली ही रहती हैं, कवि सन्मेलन और मुशायरे भी यहाँ होते रहते हैं, यहाँ कि भूमि ने बहुत से साहित्यकारों को जन्म दिया है, यादवेन्द्र शर्मा'चन्द्र', हरीश भादाणी और भी कई साहित्यकारों कि जन्मभूमि है ये, और इन सभी के साथ हमारे पारिवारिक सम्बन्ध रहे हैं और इनका आर्शीवाद भी मुझे हमेशा मिलता रहा है, यहाँ के लोग एक दुसरे कि मदद के लिए बहुत उतावले रहते हैं, इन दिनों ये शहर आधुनिकता कि ओर अग्रसर है यहाँ कई बड़े माल और होटल खुल चुके हैं, कुल मिला कर एक बहुत ही शांत और मौज मस्ती वाला शहर है ये, अगर कभी मौका मिले तो एक बार ज़रूर यहाँ जाना चाहिए!
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