आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
गमले में लगा
पौधा बन गया हूं
ना तो मेरी जड़ें
ज़मीन को छू पाती हैं
ना ही मैं आसमान को चूम पाता हूँ ,
चाहता हूं
कि कोई मुझे
गमले से निकाल कर
फिर से ज़मीन में लगा दे
ताकी मैं फिर से
अपनी मिट्टी में मिल जाऊ
और आसमान की उचाईयों को छू पाऊ।
कोई लगा दे से अच्छा है ख़ुद ही बीज बनकर हवाओं में उड़ जाऊँ और जहाँ हरियाली और जल स्रोत दिखे वहाँ धरती में गहरे उतर जाऊँ
Waah
ऐसा ही हो !
नन्हे से पौधे जैसी प्यारी कविता और खयाल ..पनपता रहे...सुप्रभात!
बहुत सुंदर
कोई लगा दे से अच्छा है ख़ुद ही बीज बनकर हवाओं में उड़ जाऊँ और जहाँ हरियाली और जल स्रोत दिखे वहाँ धरती में गहरे उतर जाऊँ
जवाब देंहटाएंWaah
हटाएंऐसा ही हो !
हटाएंनन्हे से पौधे जैसी प्यारी कविता और खयाल ..पनपता रहे...सुप्रभात!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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