आज फिर से
भूख पसरी होगी
कुछ आशियानों में
और कहीं पकवान बनेंगे,
आज फिर से
कोई मरेगा भूख से
और किसी को
बदहजमी की शिकायत होगी,
आज फिर से
धूप में झुलसेगी पीठ किसी की
और कोई पसरा होगा
ठंडी छाँव में,
आज फिर से
किसी की आँखे बरसेंगी
और कोई बेशर्मी से
खिलखिलाएगा कहीं,
आज फिर से
किसी घर मे अंधेरा होगा
और किसी का घर
रोशनी से जगमगाएगा,
आज फिर से
कोई पसीना बहाएगा
और कहीं
छलकेंगे जाम,
आज फिर से
छलनी होंगे उसके अरमान
और कहीं
जश्न मानेगा,
आखिर कब तक
ये सिलसिला चलेगा।
कुछ आशियानों में
और कहीं पकवान बनेंगे,
आज फिर से
कोई मरेगा भूख से
और किसी को
बदहजमी की शिकायत होगी,
आज फिर से
धूप में झुलसेगी पीठ किसी की
और कोई पसरा होगा
ठंडी छाँव में,
आज फिर से
किसी की आँखे बरसेंगी
और कोई बेशर्मी से
खिलखिलाएगा कहीं,
आज फिर से
किसी घर मे अंधेरा होगा
और किसी का घर
रोशनी से जगमगाएगा,
आज फिर से
कोई पसीना बहाएगा
और कहीं
छलकेंगे जाम,
आज फिर से
छलनी होंगे उसके अरमान
और कहीं
जश्न मानेगा,
आखिर कब तक
ये सिलसिला चलेगा।
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १० दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद
बहुत ही उम्दा !
जवाब देंहटाएंसुंदर, अनुपम अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत अर्से बाद आज आपको पुनः पढ़ा । वही पहले जैसी गहराई लेखन में। ज़िन्दगी यही है ..... कहीं धूप तो कहीं छांव है ।।
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयही विसंगतियां जीवन का सत्य है।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
एक ज्वलंत प्रश्न !
जवाब देंहटाएंलेकिन आम जनता की जीवनशैली में और ख़ास जन-सेवकों की जीवन शैली में इतना अंतर होना तो बनता है.