हथौड़ा चला, चलता रहा
छेनी भी मचलती रही
चोट पर चोट
माथे से टपकता पसीना,
पर वो हाथ रुकते नहीं
वो हाथ थकते नहीं
जिन्होने थामी है
हथौड़ा और छेनी,
चंद सिक्कों की आस में
अनवरत चलते वो हाथ
आग उगलते सूरज को
ललकारते वो हाथ,
क्या देखा है तुमने
कभी उन हाथों को नजदीक से
जिन हाथों ने
थामा है हथौड़ा और छेनी।
पर वो हाथ रुकते नहीं
वो हाथ थकते नहीं
जिन्होने थामी है
हथौड़ा और छेनी,
चंद सिक्कों की आस में
अनवरत चलते वो हाथ
आग उगलते सूरज को
ललकारते वो हाथ,
क्या देखा है तुमने
कभी उन हाथों को नजदीक से
जिन हाथों ने
थामा है हथौड़ा और छेनी।
जो हाथ हथौड़ा छेनी थाम लेते हैं वो कभी बेरोजगार नहीं रहते ....
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंएक सुंदर रेखाचित्र।
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंमार्मिक
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