बुधवार, 29 अप्रैल 2020

कभी ना कभी


अंधेरे के उस पार
रौशनी की किरण
नज़र आएगी तुम्हें
कभी ना कभी,
इस सन्नाटे को चीरकर
मेरी आवाज
जाएगी तुम तक
कभी ना कभी,
मेरे घर के
आंगन में
धूप जरूर आएगी
कभी ना कभी,
तपती बंजर भूमि पे
बरसेंगे मेघ
उगेगी फसल
कभी ना कभी,
खेतों में
जो हल चलाएगा
फसल भी उसी की होगी
कभी ना कभी,
इमारतों के पीछे की
मटमैली बस्तियों में
खुशियों की बहार आएगी
कभी ना कभी,
बेटियों को
उनका हक़ मिलेगा
फिर से
कभी ना कभी,
बेटियां रास्ते पर चलेंगी
बेख़ौफ़ होकर
फिर से
कभी ना कभी,
मनुष्य फिर से
संवेदना के धरातल पर
कदम रखेगा जरूर
कभी ना कभी,
जागेगा ज़मीर
इंसान का
फिर से
कभी ना कभी,
खुरदरे हाथों पर
उभर आये हैं जो छाले
उन पर मरहम लगाने आएगा कोई
कभी ना कभी,
पीठ पर
जो उठाते हैं
खुद से ज्यादा भार
उनको न्याय मिलेगा
कभी ना कभी,
गंगा में फिर से
स्वच्छ निर्मल जल
बहेगा फिर से
कभी ना कभी,
बोझिल रिश्तों में
आएगी मिठास
फिर से
कभी ना कभी,
हमारा अहंकार
बह जाएगा
मोम की तरह पिघल कर
कभी ना कभी,
फिर से
हरी भरी होगी ये धरती
और मुस्कुराएगी प्रकृति
कभी ना कभी।




बुधवार, 22 अप्रैल 2020

प्रेमी हूँ मैं


मैंने देखा है
प्रकृति को बहुत करीब से
शरीक हुई है वो
मेरी खुशियों में,
मैंने महसूस किया है
उसका दर्द
हृदय की गहराइयों से,
मैंने देखा है
बारिश में पेड़ों को झूमते हुए
पौधों को मुस्कुराते हुए
और कोयल को गाते हुए,
मैंने देखा है
कलियों को खिलते हुए
मदहोश हुआ हूँ मैं
फूलों की खुश्बू से,
मैंने देखा है
आसमान मे इंद्रधनुष बनते हुए
पेड़ पौधों के लिए भी
रोया हूँ मैं,
महसूस किया है मैंने
धरती का दर्द
और सुना है
पहाड़ों का रूदन भी,
हाँ मैं प्रेमी हूँ
इस खूबसूरत प्रकृति का
दर्द होता है
जब कोई इसे छेड़ता है
या खराब नज़र से देखता है।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

अगर तुम ना होते


सोचो
क्या होता
अगर तुम ना होते,
क्या शहर की गलियाँ
वीरान हो जाती
या नुक्कड़ पे जमघट ना होता,
क्या शराब ना होती
या मयखाने बंद हो जाते,
क्या सूरज पश्चिम से निकलता
या नदियाँ सूख जाती,
क्या फूल नहीं खिलते
या पत्ते मुरझा जाते,
क्या कोई नहीं मुस्कुराता
या कोई जश्न नहीं मनाता,
तुम्हारे होने या ना होने से
क्या फर्क पड़ता है,
सब कुछ इसी तरह चलता
सिर्फ तुम ना होते।

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

ये जो मर गया कल रात



ये जो मर गया कल रात को
उसका क्या नाम था
वो राम था या श्याम था
या फिर उसका नाम रहमान था,
पहले नाम बताओ
फिर तय होगा
कि वो क्यों मरा
और उसे किसने मारा,
पहले नाम
फिर तय होगा
कि वो खुदकशी थी
या हत्या,
धर्म क्या था उसका
हिन्दू था या मुसलमान
सिख था या ईसाई
पहले बताओ सब कुछ
फिर तय होगा,
सियासतदां हैं हम
जो कहेंगे वही सच होगा।

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

एक अरसे के बाद



इस वक़्त सम्पूर्ण विश्व कोरोना वाइरस की वजह से एक विकट परिस्थिति में है, लेकिन शायद ईश्वर ने हमें कुछ सिखाने के लिए ही यह किया है। इस परिस्थिति की भयावहता के बीच हमें सकारात्मक रहते हुए इससे लड़ना है।
इसलिए आज कुछ सकारात्मक पंक्तियाँ...

हर तरफ
निशब्द घोर सन्नाटा है
एक अरसे के बाद,
प्रकृति के चेहरे पे मुस्कान है
एक अरसे के बाद,
सुकून मिला है शायद प्रकृति को
एक अरसे के बाद,
दिखाई दिया है नीला आसमान
और बर्फ से ढके पहाड़
एक अरसे के बाद,
छत पर लेटकर तारों को देखा
एक अरसे के बाद,
पंछी उन्मुक्त आकाश
में उड़ रहे हैं निर्भिक होकर
एक अरसे के बाद,
बच्चों को मिला है पिता का प्यार
एक अरसे के बाद,
माँ के चेहरे पे लौटी है मुस्कान
एक अरसे के बाद,
खिलखिलाहट से गूंज उठे हैं घर
एक अरसे के बाद,
रिश्तों में मिठास सी घुल रही है
एक अरसे के बाद,
खुद को जानने का मौका मिला है
एक अरसे के बाद,
बीत जाएगा ये वक़्त भी
पर हमें बरकरार रखनी है मुस्कान
अपने चेहरे पर
एक अरसे के बीत जाने के बाद ।