गुरुवार, 22 नवंबर 2012

क्षणिकाएँ



(1)
पिता जी ने कहा था
बेटा सत्य के मार्ग पर चलना
कुछ दूर तक मैं चला भी था
लेकिन फिसलन इतनी थी वहाँ
कि मेरे घुटने छिल गए।
(2)
माँ ने कहा था
बेटा कभी झूठ मत बोलना
लेकिन मैं
झूठ के पर्वत पर खड़ा हूँ आज।
(3)
एक दोस्त ने कहा था
कभी धोखा मत देना
लेकिन बहुत पुरानी बात हो चुकी है वो
और मुझे भूलने की बीमारी है।
(4)
किसी ने कहा था
जीवन मे बहुत सुख मिलेगा तुम्हें
दुखों के पहाड़ पर
खड़ा हूँ आज।




12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर क्षणिकाएं.... सत्य को उद्घाटित करती हुई

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  2. यही सत्य है और जीवन भी ...सुन्दर क्षणिकाएं.

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  3. हर क्षणिका अपना ... अनुभव व्‍यक्‍त करती हुई ...

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  4. bahut sundar likha aur aaj ke yatharth ko isa tarah rakha hai ki hamare purane aadarshon ko aaj ka parivesh munh chidha raha hai.

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  5. सत्य को त्यागा तो दुःख को बुलाया, धोखा दिया तो दुःख बुलाया..अब बुलाए हुए मेहमान का सम्मान तो करना ही होगा..

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  6. संक्षेप में बहुत कुछ कह दिया आपने |उम्दा क्षणिकाएं |
    आशा

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  7. पर विश्वास यही है कि आपके अग्रजों द्वारा कही गयी बात काफी हद तक साकार होगी..

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  8. बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती आपकी ये क्षणिकाएँ

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  9. nilesh ji namaskar, aaj aapke blog ka link mil gaya. bahut hi umda kshanikaye likhi hai aapne.

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  10. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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