सोमवार, 27 अगस्त 2012

आम आदमी



सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात
हर सुबह फिर से ले आती है
अनगिनत चिंताओं की सौगात,
फिर से डरा सहमा सा
गुजारता हूँ दिन किसी तरह
छुपता हूँ मकान मालिक से
और सुनता हूँ ताने बीवी के,
हर सुबह निकलता हूँ घर से
बच्चों की फीस और
रासन की चिंता लिए
और दिन ढले फिर से
खाली हाथ लौट आता हूँ,
जीने की जद्दोजहद मे
और रोज़मर्रा की जरूरतों मे उलझा
मैं एक आम आदमी 
बिता देता हूँ
आँखों ही आँखों मे सारी रात,
इस आस मे
कि कल तो होगी
एक नयी सुबह  
जब मैं बच्चों को
बाज़ार ले कर जाऊंगा,
और बीवी को
एक नयी साड़ी दिलवाऊंगा,
एक नयी सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात मेरी
मैं हूँ एक आम आदमी। 

10 टिप्‍पणियां:

  1. .

    सुंदर भाव और सुंदर शब्द !


    शुभकामनाओं सहित…

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  2. खूबसूरत इस दिल के अहसास

    रोज़ की एक नई चिंता ...बहुत खूब ..इसी का नाम तो जिंदगी हैं

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  3. जिंदगी एक पहेली है ....
    एक आम आदमी की जीवन-लीला व्यक्त करती हुई अतिसुंदर रचना |

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  4. बहुत ही अच्‍छी लगी आपकी यह प्रस्‍तुति... आभार। मेरे पोस्ट "प्रेम सरोवर" के नवीनतम पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है।

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  5. भावमय करते शब्‍द ... बहुत ही अच्‍छी लगी यह प्रस्‍तुति।

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  6. आम आदमी अगर आम ही रहकर जीना चाहता है तो कोई कुछ नहीं कर सकता...वरना सितारों से आगे जहाँ और भी हैं..

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  7. जीवन की व्यथा की कथा...
    बहुत बढ़िया..

    अनु

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