मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

क्षणिकाएँ





बेवफाई
उनकी फितरत थी
हम यूँ ही ज़ज्बातों में
बहते रहे!


वो चैन की नींद
सोते रहे उम्र भर
हमने आँखों ही आँखों में
ज़िन्दगी गुजार दी!


हम वफ़ा की
कसमें खाते रहे
और वो
बेवफाई की हद से गुज़र गए!


हम दर्द की कश्ती में
सवार थे
और उन्होंने
पतवार खेने से मना कर दिया!

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