आवारा बादल
आवारा बादल हूँ मैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ, भटकना ही तो फितरत है मेरी.....
बुधवार, 26 अक्टूबर 2011
एक नन्ही सी लौ
दीपक की
एक नन्ही सी लौ
रौशन कर सकती है
इस ज़हाँ को,
हर एक कोने से
ढूंढ कर
अँधेरे के शैतान को
क़त्ल कर सकती है वो,
आओ हम भी
उस लौ की रौशनी में नहा लें
इस दीपावली पर
एक दीपक ऐसा जलाएं
जिसे आंधियाँ भी
बुझा ना सके!
रविवार, 23 अक्टूबर 2011
एक आवाज़ "जगजीत सिंह"
वो आवाज़
जो ले जाती थी हमें
भावनाओं के दरिया मे
और देती थी साथ
तन्हाइयों मे,
वो आवाज़
जो ले जाती थी
बचपन मे
और रिश्तों का अर्थ
समझाती थी,
वो आवाज़
जो बंद कमरे मे
बत्तियाँ बुझाकर
सुना करता था मैं,
वो आवाज़
जो एक दिल की
गहराइयों से निकलकर
मेरे दिल की गहराइयों मे
उतर जाती थी,
सचमुच
बहुत सुकून देती थी
वो आवाज़
जगजीत सिंह की आवाज़,
आज कुछ खामोश है मगर
वो आवाज़
यूँ ही गूँजती रहेगी
वादियों मे सदियों तक।
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