बुधवार, 3 अगस्त 2011

भीड़ में अकेला

एक दिन मैं 
अपने सारे उसूलों को 
तिजोरी में बंद कर 
घर से खाली हाथ निकलता हूँ 
और देखता हूँ कि अब मैं 
भीड़ में अकेला नहीं हूँ,
अब मुझे 
दुनियादारी का कुछ सामान 
बाज़ार से खरीदना होगा
और अपने अंतर को
उससे सजाना होगा,
या फिर 
भीड़ में अकेले चलने का 
साहस जुटाना होगा!

23 टिप्‍पणियां:

  1. Kadva Sach kaha aapne ... Sare usul kinare par rakh bheed me shamil ho jao ... nahi to ladte raho aur ladte huye mar jao.

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  2. बहुत खूब कहा है आपने ...इस रचना में ...।

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  3. ज़रूरी है यह सामान इस दुनिया में जीने के लिए... क्योंकि आज के ज़माने में इन उसूलों और आदर्शों को गूंधकर दो वक्त की रोटी नहीं बनाई जा सकती!
    बहुत गहरी अभिव्यक्ति है अनुज!!

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  4. यह वाकई आवश्यक है ....आपको शुभकामनायें !

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  5. दुनियादारी का कुछ सामान
    बाज़ार से खरीदना होगा
    kya bat hai bahut sahi kaha ...

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  6. बिल्कुल... रास्तों के उतार चढ़ाव तभी एकसार होंगे

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  7. waah...bahut dino baad aaj blog padhne nikla hoon.... achhi achhi cheejein mil rahi hain padhne ko... waah..

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  8. भीड़ में अकेले चलना हो तो तिजोरी फिर से खोलनी होगी.... और खली को खाली कर दें.

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  9. सही कहा आपने....
    अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

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  10. अद्भुत रचना! सुन्दर प्रस्तुति..

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  12. "ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ कोब्लॉगर्स मीट वीकली (3) Happy Friendship Day में आप आमंत्रित हैं /

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  13. क्या बात!
    छोटे में सच्चाई बयां हो गयी...

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