गुरुवार, 28 जुलाई 2011

वक़्त मिले तो देखना मुझे


ढलते हुए सूरज की 
किरण हूँ मैं
शाम को वक़्त मिले तो 
देखना मुझे !

19 टिप्‍पणियां:

  1. दो लाइन बहुत कुछ कहती हैं ....
    शुभकामनायें !

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  2. दुनिया उगते हुए सूरज को सलाम करती है भाई
    ढलते हुए सूरज के लिए वक्त नहीं है लोगों के पास
    कहते हैं न "सफलता के सौ बाप होते हैं,पर असफलता
    अनाथ होती है"।वक्त शब्द का खुसुरत प्रयोग
    सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. नीलेश जी
    कैसे हैं ? सब कुशल-मंगल तो है न !


    ढलते हुए सूरज की
    किरण हूं मैं
    शाम को वक़्त मिले तो
    देखना मुझे !

    अच्छे ख़यालात हैं … सुंदर !

    मेरी ग़ज़ल के दो शे'र आपके लिए -
    ख़ौफ़ मेरी आंच से नाहक़ ही क्यों राजेन्द्र है
    शाम का सूरज हूं , थोड़ी देर में ढल जाऊंगा

    मोम हूं , यूं ही पिघलते' एक दिन गल जाऊंगा
    फिर भी शायद मैं कहीं जलता हुआ रह जाऊंगा


    अगर इसे पूरा पढ़ना-सुनना चाहें तो यह रहा लिंक
    शाम का सूरज हूं

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. बहुत खूब .....!!

    अपनी १०,१२ क्षणिकाएं भेज दीजिये
    संक्षिप्त परिचय और चित्र के साथ ......

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