शुक्रवार, 6 मई 2011

जुर्म

मेरी पलकों ने
आंसुओं को
कैद कर लिया है
शायद बेतरह बहने की
सज़ा दी है,
मेरे आंसुओं ने भी
अपना जुर्म 
कुबूल कर लिया है
बेतरह बहने के 
जुर्म में 
सजा ए मौत 
मांगी है! 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आमीन. मैं भी यही चाहती हूँ कि तुम्हारे ही नही उन सबके आंसुओं को ऐसी ही सख्त सजा दी जाए जो मेरे प्रिय है.मेरे दिल के करीब हैं.
    जानते हो क्या हुआ? रात उठी मेरे पैर के तले भीग गये.मैंने कहा-'कौन हो जिसने मेरे पैरों को भिगो दिया?' बोले-'हम उनके आँखों से ढलके आँसू है जिन्हें तुम प्यार करती हो. तुम्हारे पास चले आये.अब वहाँ नही जायेंगे.उनके चेहरों पर हम खिल नही पाते हैं'
    मैंने उठा कर उन्हें अपनी आँखों में पनाह दे दी .
    हा हा हा सचमुच छोटी सी पर अच्छी कविता है क्योंकि कुछ नई सी है.पर.....अब कैसे लिखोगे किसी आंसूं पर कोई कविता? अच्छे बच्चे रोते नही है हैं क्योंकि उनके आँसू अब उनके नही रहे.हा हा हा

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  2. क्या बात है...इतनी बड़ी सजा!!!

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  3. Nilesh ji bahut khoob likha hai hai .vaise kabhi kabhi aansuon ka bah jana bhi man ko bahut sukoon deta hai .

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  4. bas yahi zurm kiya hai... koi afsos nahi, zahar khud maine piya hai, koi afsos nahi

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  5. उफ़ …………क्या बात कही है…………सज़ा भी ऐसी कि मौत भी शर्मा जाये।

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