रविवार, 27 मार्च 2011

परी


आसमान से उतरी
परी थी वो 
न जाने कितने 
ख्वाब थे पलकों में,


चकित थी वो 
ठहरे हुए पानी में
अपने सौंदर्य को देख ,


छूने की कोशिस में
बिखर गया 
उसका प्रतिबिम्ब,


पलकों से 
दो बूंद आंसू भी 
गिरे झील में 
लेकिन 
उन आंसुओं का
कोई वजूद न था,


क्योंकि 
ये झील तो
ना जाने कितने 
आँसुओं से
मिलकर बनी है,


न जाने कितनी परियाँ
उतरती रही हैं 
आसमान से 
निरंतर..........

और इसी 
झील के किनारे
बहाती रही है आँसू  
सदियों से...............

शनिवार, 12 मार्च 2011

जज़्बात

ऐ खुदा
मर रहे हैं
मेरे जज़्बात
बचा ले इन्हें, 


ज़िन्दगी ने दिए हैं
जो ज़ख्म
उन्हें रहने दे
इसी तरह
बहने दे लहू
और दर्द से
तड़पने दे मुझे,


मुझे तो 
जीने के लिए
सिर्फ दर्द और
जज़्बात की
जरुरत है!

मंगलवार, 1 मार्च 2011

गणित

ज़िन्दगी
गणित के 
बहुत कठिन प्रश्न 
पूछ रही है,


और मैं 
हमेशा से 
गणित में
कमज़ोर रहा हूँ,


जोड़ बाकी 
गुणा भाग 
मेरे बस का नहीं,


मैं तो एक
साधारण सा
विद्यार्थी था!