रविवार, 20 फ़रवरी 2011

चाँद के साथ

Photo by Debjani Tarafder
चाँद के साथ 
वो भी जाग रही थी 
रात भर
और भीग रहे थे 
चांदनी में 
उसके ज़ज्बात, 
चाँद पर लगे दाग
याद दिलाते थे उसे 
उसके जख्म 
जो ज़िन्दगी ने 
दिए थे, 
कभी जब चाँद 
बादलों में छुप जाता
तो व्याकुल 
हो उठती थी वो,
और उसकी 
नर्म नाज़ुक हथेलियाँ  
बादलों हो हटाने की
कोशिस में 
व्यर्थ ही आसमान की ओर
उठ जाती थी,
लेकिन 
निर्मम बादलों के झुण्ड
नहीं समझ पाते थे
उसकी भावनाओं को
और छुपा कर 
चाँद को 
हँसते थे उस पर,
लेकिन चाँद  
उसकी भावनाओं को 
समझ कर 
बादलों से लडता था
उसकी खातिर,
और दीदार करता था
अपने ही जैसे
धरती के इस चाँद का! 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण रचना..बहुत सुन्दर

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  2. बहुत भावपूर्ण रचना| धन्यवाद|

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  3. भीग रहे थे चांदनी में उसके जज़्बात ...बहुत सुन्दर ....

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  4. तुझे चांद के बहाने देखूं...

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  5. नर्म नाज़ुक हथेलियाँ
    बादलों हो हटाने की
    कोशिस में
    व्यर्थ ही आसमान की ओर
    उठ जाती थी,
    अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई

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  6. वाह नीलेश जी,
    लुका छिपी को नया नजरिया दिया।

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  7. कोमल भावनाओं को खूबसूरत शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करती एक मासूम कविता !

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  8. बहुत भावपूर्ण रचना..बधाई स्वीकारें।

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  9. बहुत भावपूर्ण रचना..बहुत सुन्दर

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  10. सुन्दर बिम्बों से पूर्ण रचना
    बधाई

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  11. चाँद की मजबूरिय तो चाँद ने पार कर लीं ... पर उनकी मजबूरियों को समझना आसान नहीं .... दो चाहते हुवे भी बाहर नहीं आ सकतीं ...

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  12. चाँद उसकी भावनाओं को समझकर लड़ पड़ता था बादलों से ...
    रात भर चाँद से बातें की उसने , चाँद ने भी तो अपना फ़र्ज़ निभाना था !
    बहुत सुन्दर !

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  13. बहुत भावपूर्ण रचना..बधाई स्वीकारें।

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